डिजिटल हिंसा का चक्रव्यूह: महिला पत्रकारों पर हमला—लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी

 लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला 


डिजिटल हिंसा का चक्रव्यूह: महिला पत्रकारों पर हमला—लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी

पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सत्य को उजागर करना और पीड़ितों की आवाज़ को ताकत देना होता है। लेकिन जब महिला पत्रकार, जो विशेष रूप से सामान्य महिलाओं, गरीब और शोषित तबकों की आवाज़ उठाती हैं, वे खुद डिजिटल हिंसा और डर का शिकार बनने लगें, तो यह केवल उनके पेशे के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज और लोकतंत्र की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक बड़ा खतरा है।

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की हालिया रिपोर्टों ने इस खतरे की गंभीरता को उजागर किया है। 

## क्यों महिला पत्रकार बन रही हैं निशाना?

महिला पत्रकारों को निशाना बनाए जाने के पीछे गहरा सामाजिक और राजनीतिक उद्देश्य है, जो उन्हें सीमाओं में बांधे देखना चाहता है।

 पीड़ितों की आवाज़: महिला पत्रकार ही आम महिलाओं पर हो रहे अन्याय, घरेलू हिंसा, लैंगिक असमानता और सत्ता के दुरुपयोग जैसे संवेदनशील मामले उजागर करती हैं। पीड़ित महिलाएँ अक्सर पुरुषों के बजाय महिला पत्रकारों के समक्ष अधिक खुलकर अपनी बात कह पाती हैं।

सत्ता को चुनौती: ये पत्रकार जब लैंगिक न्याय और असमानता जैसे मुद्दों पर स्टोरी करती हैं, तो यह सीधे उन फासीवादी ताकतों को चुनौती देती है जो महिलाओं को चुप और अधीनस्थ देखना चाहती हैं।

 साख खत्म करना: हमलावरों का मुख्य उद्देश्य महिला पत्रकारों को डराना, हतोत्साहित करना और उनकी साख (Credibility) को खत्म करना है, ताकि वे संवेदनशील विषयों पर काम करना छोड़ दें।

यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार, तीन-चौथाई महिला पत्रकारों को ऑनलाइन हिंसा का सामना करना पड़ा है, और हर चार में से एक को शारीरिक हमले या जान से मारने की धमकी मिली है।

## हिंसा के नए हथियार: AI और डिजिटल युद्ध

डिजिटल प्लेटफॉर्म अब केवल ट्रोलिंग या गालियों का माध्यम नहीं रहा, बल्कि यह वास्तविक हिंसा की तैयारी का मैदान बन चुका है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक ने इस खतरे को और भी घातक बना दिया है:

 डीपफेक: AI के माध्यम से महिला पत्रकारों के फर्जी वीडियो या तस्वीरें बनाकर सोशल मीडिया पर फैलाई जाती हैं, जिससे उनका चरित्रहनन होता है।

 डॉक्सिंग (Doxing): उनकी निजी जानकारी (घर का पता, फ़ोन नंबर आदि) ऑनलाइन उजागर की जाती है, जिससे उनका और उनके परिवारों का असुरक्षित महसूस करना स्वाभाविक है।

 लैंगिक दुष्प्रचार: यह यौन हिंसा और अपमानजनक टिप्पणियों के रूप में होता है, जिसका उद्देश्य महिला पत्रकारों को मानसिक दबाव में लाना है।

विश्व प्रेस स्वतंत्रता सम्मेलन 2020 की स्नैपशॉट रिपोर्ट के अनुसार, 73% महिला पत्रकारों ने ऑनलाइन हिंसा का अनुभव किया, और चौंकाने वाली बात यह है कि 20% महिला पत्रकारों को ऑनलाइन धमकियों के परिणामस्वरूप असली जीवन में हिंसा झेलनी पड़ी।

## समाधान: संस्थागत और तकनीकी जवाबदेही

इस खतरे से निपटने के लिए बहुआयामी और कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है:

1. कानूनी और सरकारी कार्रवाई:

 संज्ञेय अपराध: डिजिटल या ऑनलाइन हिंसा को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में लाकर त्वरित और सख्त कार्रवाई की जाए।

 जवाबदेही: सरकारों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए कि वे अपने प्लेटफॉर्म पर होने वाली हिंसा को रोकने के लिए क्या कदम उठा रहे हैं।

2. मीडिया संस्थानों की भूमिका:

 सुरक्षा नीतियाँ: मीडिया संस्थानों को महिला पत्रकारों की सुरक्षा के लिए ठोस नीतियाँ बनानी चाहिए, जिसमें कानूनी मदद, मनोवैज्ञानिक परामर्श और सुरक्षा संबंधी प्रशिक्षण शामिल हों।

3. तकनीकी समाधान:

 AI एथिक्स: टेक्नोलॉजी कंपनियों को चाहिए कि वे अपने AI टूल्स को नैतिक सुरक्षा कवच के साथ विकसित करें, जिससे डीपफेक जैसे दुरुपयोग को शुरुआती चरण में ही रोका जा सके।

4. सामाजिक बदलाव:

 सम्मान का माहौल: समाज में महिला पत्रकारों के प्रति सम्मान और सहयोग की भावना पैदा करने की ज़रूरत है। उन पर हमला केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है।

यूनेस्को ने सही चेताया है: मीडिया में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना, सभी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अनिवार्य है। अगर महिला पत्रकारों को डराकर चुप करा दिया गया, तो यह केवल पत्रकारिता की नहीं, बल्कि लोकतंत्र की पराजय होगी। इन डिजिटल हमलावरों का डटकर सामना करना होगा, क्योंकि वे सवालों से डरते हैं, और इसीलिए चुप कराने की साजिश कर रहे हैं।