आधुनिक चिकित्सा का विरोधाभास: विकास या जीवन का कष्टकारी व्यवसायीकरण?

 लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला 


आधुनिक चिकित्सा का विरोधाभास: विकास या जीवन का कष्टकारी व्यवसायीकरण?

हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ मेडिकल साइंस ने चमत्कारी प्रगति की है—रोबोटिक सर्जरी, जीन थेरेपी, और असाध्य रोगों के टीकों का विकास। फिर भी, आज हर सरकारी और निजी अस्पताल में पैर रखने की जगह नहीं है; एक साल के बच्चे से लेकर 90 साल के बुजुर्ग तक सब मरीज बने हुए हैं। यह विरोधाभास एक गंभीर प्रश्न खड़ा करता है: क्या हमारा विकास हमें स्वस्थ बना रहा है, या यह जीवन को कष्टकारी और अत्यधिक व्यवसायीकरण के अधीन कर रहा है?

हजारों सालों के पारंपरिक ज्ञान की तुलना में आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों की कार्यशैली पर जो तीखे सवाल उठे हैं, वे केवल चिकित्सा विज्ञान पर नहीं, बल्कि हमारी जीवनशैली और स्वास्थ्य सेवा के नैतिक आधार पर चोट करते हैं।

## पारंपरिक दक्षता बनाम आधुनिक जोखिम

हम उन अनपढ़ नाइयों की दक्षता की अनदेखी नहीं कर सकते जिन्होंने हजारों सालों से खतना किया, या उन दागियों की, जिन्होंने करोड़ों बच्चों को सामान्य प्रसव से जन्म दिलाया। उनका ज्ञान पुश्तैनी अनुभव, प्रकृति के प्रति सम्मान और अति-हस्तक्षेप से बचने पर आधारित था।


इसके विपरीत, आधुनिक चिकित्सा में अति-हस्तक्षेप (Over-Intervention) का चलन बढ़ गया है:


* सर्जरी की अनावश्यकता: जहाँ अनपढ़ जर्राह टूटी हड्डियों को जोड़ते थे, वहीं अब ऑर्थोपेडिक सर्जन पर अक्सर यह आरोप लगता है कि वे अनावश्यक रूप से जटिल प्रक्रियाओं को बढ़ावा देते हैं। गुजरात के मशहूर सर्जन द्वारा बच्चे का अंग काट देने जैसी घटनाएँ पूरी व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं।

* प्रसव का व्यवसायीकरण: प्राकृतिक प्रसव के बजाय, सिजेरियन ऑपरेशन (C-Section) का चलन इसलिए बढ़ गया है क्योंकि यह डॉक्टरों के लिए कम जोखिम भरा (Medicolegal) और अधिक लाभदायक है। प्रसव एक प्राकृतिक प्रक्रिया न रहकर, अब एक लाभदायक सर्जिकल घटना बन गया है।


## जीवनशैली का पतन और 'डिब्बे' का बाजार


चिकित्सा की प्रगति का दावा तब खोखला हो जाता है जब लोग स्वस्थ होने के बजाय बीमार अधिक पड़ रहे हैं। इसका सीधा संबंध हमारी बदली हुई जीवनशैली से है:


* आँखों का अंधापन: हजारों साल तक लोग बिना चश्मे के 90 साल तक देखते थे। आज 5 साल के बच्चों को चश्मा लग रहा है। यह आधुनिक डॉक्टरों की नाकामी से ज़्यादा डिजिटल स्क्रीन की लत, तनाव और पोषण के अभाव की नाकामी है।

* शुद्धता का अभाव: जहाँ हजारों साल तक लोग मनों गुड़ खाते थे और स्वस्थ रहते थे, वहीं आज आधुनिक मशीनों से इलाज के बाद भी दांतों का कैंसर बन जाता है। इसका कारण आहार में मिलावट, प्रदूषण और तनाव है, जिसे आधुनिक चिकित्सा भी नियंत्रित नहीं कर पा रही है।

* बाजारवाद की जीत: बच्चे हजारों साल से माँ का या प्राकृतिक दूध पीकर सेहतमंद होते थे, लेकिन अब कंपनियों ने 'डिब्बे वाला दूध' (Formula) बेचकर माता-पिता पर आर्थिक बोझ डाला है और प्राकृतिक पोषण को बाज़ारवाद के अधीन कर दिया है। यह स्वास्थ्य सेवा के अनैतिक व्यवसायीकरण की पराकाष्ठा है।


## हमें क्या चुनना है?


गुरदे या पित्त की पथरी को हकीम जहाँ एक पुड़िया से निकाल देते थे, वहीं आधुनिक तकनीक अक्सर पथरी के साथ अंग को ही निकालने पर केंद्रित होती है। यह दिखाता है कि हम इलाज पर ज़ोर दे रहे हैं, लेकिन बीमारी की जड़ (बुरी जीवनशैली, पोषण की कमी, तनाव) को खत्म करने पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।


आधुनिकता और विकास का सच्चा पैमाना यह नहीं है कि हम कितने जटिल ऑपरेशन कर सकते हैं, बल्कि यह है कि हम कितने लोगों को अस्पताल जाने से रोक सकते हैं। जब हर अस्पताल मरीजों से भरा है, तो यह विकास नहीं, बल्कि जीवन का कष्टकारी व्यवसायीकरण है। हमें तुरंत पारंपरिक ज्ञान और प्राकृतिक जीवनशैली की ओर लौटना होगा, और स्वास्थ्य सेवा को लाभ कमाने की मशीन से मुक्त करना होगा।