विलियम शेक्सपीयर: साहित्य के शिखर पर विराजित 'अदृश्य' सत्ता और पहचान का महा-षड्यंत्र

 लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला 


विलियम शेक्सपीयर: साहित्य के शिखर पर विराजित 'अदृश्य' सत्ता और पहचान का महा-षड्यंत्र

विलियम शेक्सपीयर का नाम केवल 37 कालजयी नाटकों और 154 सॉनेट्स का संग्रह मात्र नहीं है; यह चार सौ साल पुराना एक ऐसा साहित्यिक मरीचिका (Literary Mirage) है जिसने अकादमिक जगत को 'कौन था शेक्सपीयर?' के प्रश्न पर दो ध्रुवों में बाँट रखा है। यह एक ऐसा अदृश्य लेखक है जिसकी पूजा की जाती है, जिसका हर पन्ना विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है, पर जिसका कोई भी भौतिक प्रमाण, हस्तलिपि, या समकालीन गवाह मौजूद नहीं है। शेक्सपीयर का जीवन, एक साहित्यिक जीवनी से अधिक अस्तित्व की एक गूढ़ पहेली है।

I. अस्तित्व की शून्यता: 'भूतहा' गवाहियाँ

शेक्सपीयर के रहस्य का आधार उसके जीवन से जुड़ी दस्तावेजी ख़ामोशी है। यदि वह 16वीं शताब्दी के अंत तक 'नकलची कव्वे' से 'अंग्रेजी का महान सेनेका' बन गया था, तो उसके जीवन की गवाहियाँ क्यों नदारद हैं?

 अखंडनीय अनुपस्थिति: लंदन में 26 साल बिताने के बावजूद, किसी भी समकालीन साहित्यकार—चाहे वह बेन जॉनसन हो, फ्रांसिस बेकन या क्रिस्टोफर मार्लो—ने कभी यह दावा नहीं किया कि वे शेक्सपीयर से मिले। न वह किसी साहित्यिक गोष्ठी में गया, न उसने किसी को पत्र लिखा, न उसे किसी ने पत्र लिखा। वह लन्दन में कहाँ रहता था, यह भी कोई नहीं जानता था।

 लेखन का कोई प्रमाण नहीं: 37 नाटकों में से एक भी नाटक शेक्सपीयर की हस्तलिपि में मौजूद नहीं है। कोई कच्चा ड्राफ्ट, मसौदा, या छोटी पर्ची भी नहीं, जो उसके लेखक होने का प्रमाण दे सके।

 मृत्यु पर 'चरम सन्नाटा': 1616 में जब उसकी मृत्यु हुई, तो किसी अखबार, पत्रिका या समकालीन कवि ने शोक संदेश या श्रद्धांजलि प्रकाशित नहीं की। जिस कब्रिस्तान में उसे दफनाया गया, वहाँ के रजिस्टर में भी उसका उल्लेख केवल "विलियम शेक्सपीयर" के रूप में है—ना लेखक, ना कवि, ना नाटककार।

उसकी कब्र पर उत्कीर्ण शाप कि "जो मेरी अस्थियों को हिलाएगा, वह शापित होगा," मृत्यु के एक दशक बाद लगाया गया, जो उसकी रहस्मय अनुपस्थिति को और गहराता है।

II. ज्ञान का विरोधाभास: स्ट्रेटफोर्ड बनाम शब्दावली

'स्ट्रेटफर्ड अपॉन एवॉन' का गाँव का देहाती, जो अभिलेखों के अनुसार कभी गाँव के स्कूल में भी नहीं पढ़ा, के पास जो ज्ञान था, वह उसकी पृष्ठभूमि से असंभव रूप से मेल नहीं खाता:

 कानूनी और दरबारी ज्ञान: शेक्सपीयर के नाटकों में अदालती बहसों, न्यायिक शब्दावली और राजदरबारों की परम्पराओं, रिवाजों, अदब का जो सटीक और व्यावसायिक वर्णन है, उस पर कई न्यायाधीशों और शोधकर्ताओं ने सवाल उठाए हैं। उनके अनुसार, यह ज्ञान किसी वकील, जज या राजदरबार में उच्च पद पर रहे व्यक्ति के पास ही हो सकता है।

 समुद्री और विदेशी ज्ञान: नाटकों में समुद्र-यात्रा के तकनीकी शब्दों का प्रयोग इतना बारीक है कि नौसेना के अधिकारियों ने कहा कि यह ज्ञान बिना तीन साल समुद्र में गुजारे संभव नहीं। इसके अलावा, उसके चौदह नाटकों की पृष्ठभूमि इटली है, जिसमें वेनिस की ऐसी गलियों का वर्णन है जो केवल स्थानीय लोगों को पता थीं—जबकी शेक्सपीयर के ब्रिटेन से बाहर जाने का कोई यात्रा-दस्तावेज़ नहीं है।

पुस्तकालय की शून्यता: अधिकांश महान लेखकों की वसीयत में "मेरी सभी किताबें फलां को" देने का उल्लेख होता है। शेक्सपीयर की वसीयत में तलवार, पलंग और कपड़े का जिक्र है, लेकिन किताब, पाण्डुलिपि या पुस्तकालय जैसे शब्द एक बार भी नहीं आते। उसके घर पर भी कभी कोई किताब नहीं मिली।

III. महान लेखक की पहचान का महा-षड्यंत्र

मार्क ट्वेन ने अपनी किताब "क्या शेक्सपीयर मर गया?" में कटाक्ष किया था कि "ये आदमी अपने दो हस्ताक्षर भी एक जैसे नहीं कर सकता और उसने शाश्वत शब्द रच दिए?" वॉल्ट व्हिटमैन, सिगमंड फ्रायड और चार्ली चैपलिन जैसे बुद्धिजीवियों ने भी यह मानने से इनकार कर दिया कि स्ट्रेटफ़ोर्ड का एक अनपढ़ व्यक्ति इतना गहरा दार्शनिक और भाषाई स्तर का साहित्य रच सकता था।

यह साहित्यिक रहस्य अंततः एक बड़े प्रश्न पर टिक जाता है: यदि विलियम शेक्सपीयर नहीं था, तो यह महान साहित्य कहाँ से आया?

शोधकर्ताओं ने 80 से अधिक संभावित लेखकों की सूची बनाई है, जिनमें तीन-चार नाम प्रमुखता से उभरे:

1. क्रिस्टोफ़र मार्लो (Christopher Marlowe): वह अपने समय का महान लेखक था, जिसकी हत्या का रहस्य भी अनसुलझा है। मार्लो की मृत्यु और शेक्सपीयर के नाटकों के उदय के समय का संयोग संदिग्ध है।

2. फ्रांसिस बेकन (Francis Bacon): एक उच्च शिक्षित दार्शनिक और विधिवेत्ता, जिसके पास कोर्ट के अंदरूनी ज्ञान और विशेषज्ञ शब्दावली की दक्षता थी।

3. एडवर्ड डी वीयर (Edward de Vere): एक अभिजात वर्ग का व्यक्ति, जिसे इटली के बारे में गहन जानकारी थी और जो दरबार के रिवाजों से पूरी तरह परिचित था।

अधिकांश शोधकर्ता अब इस मत को मानते हैं कि विलियम शेक्सपीयर नाम किसी ऐसे व्यक्ति या गुप्त समूह का छद्म नाम था, जिसने अपनी सामाजिक स्थिति या राजनीतिक कारणों से अपनी पहचान सार्वजनिक नहीं की। इस तरह, विलियम शेक्सपीयर भारतीय सिनेमा के 'ही-मैन' की तरह ही, साहित्य के शिखर पर बैठा एक ऐसा नाम है, जो दैहिक रूप से कभी मौजूद नहीं था, लेकिन जिसकी साहित्यिक सत्ता चार सौ साल बाद भी अप्रतिम है।