H-1B वीज़ा संकट : भारतीय टैलेंट की वैश्विक बेदखली और भारत की चुनौती

 लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला 

H-1B वीज़ा संकट : भारतीय टैलेंट की वैश्विक बेदखली और भारत की चुनौती

1. ट्रम्प प्रशासन का नया फैसला

19 सितंबर, 2025 को ट्रम्प प्रशासन ने घोषणा की कि अब H-1B वीज़ा आवेदन और नवीकरण पर \$1,00,000 (₹84 लाख) शुल्क लगेगा। अभी तक यह शुल्क \$1,000 से \$5,000 के बीच था। यानी 100 गुना बढ़ोतरी। यह 21 सितंबर से लागू हो गया।

इस फैसले का तर्क है – “अमेरिकी नौकरियों की रक्षा और वीज़ा के दुरुपयोग पर रोक।”

लेकिन वास्तविकता में इसका सबसे बड़ा शिकार भारतीय टैलेंट और भारतीय आईटी उद्योग बन रहा है।

2. भारत पर सीधा असर

भारत H-1B का सबसे बड़ा लाभार्थी है। सभी स्वीकृत आवेदनों में भारत की हिस्सेदारी 71% है।

 2025 की पहली छमाही में अकेले अमेज़न ने 12,000+ भारतीय इंजीनियर भर्ती किए।

माइक्रोसॉफ्ट और मेटा ने 5,000+ प्रत्येक।


 TCS, Infosys, Wipro जैसी कंपनियां ऑनसाइट प्रोजेक्ट्स के लिए इस वीज़ा पर निर्भर हैं।

यह शुल्क उनकी लागत बढ़ाकर 13,000+ नौकरियों पर संकट ला सकता है। भारत की आईटी सेवाओं का निर्यात, जो अर्थव्यवस्था में \~8% योगदान देता है, गंभीर रूप से प्रभावित होगा।

3. भारतीय प्रोफेशनल्स और परिवारों की त्रासदी

H-1B केवल नौकरी ही नहीं, बल्कि कई भारतीय परिवारों की जीवनरेखा है। हर साल भारत को इस माध्यम से \$10-15 बिलियन रेमिटेंस मिलता है।

अब:

 युवा इंजीनियर्स और डॉक्टर्स अमेरिका छोड़ने पर मजबूर होंगे।

 OPT (Optional Practical Training) से करियर शुरू करने वाले छात्रों के लिए शुरुआती अवसर ही बंद हो जाएंगे।

H-1B पर भारत से मिलने आने वालों को सिर्फ यात्रा की अनुमति के लिए भी \$1,00,000 देना होगा।

  यह न केवल आर्थिक बोझ है, बल्कि पारिवारिक टूटन और मानसिक आघात भी है।

4. परदेस और वतन का द्वंद्व

यह स्थिति उन प्रवासी भारतीयों जैसी है, जिनके टैलेंट को अपनों ने ही कभी महत्व नहीं दिया। वे अमेरिका गए क्योंकि भारत में उनके हुनर की कद्र नहीं थी।

आज जब वहां रास्ते बंद हो रहे हैं, तो सवाल उठता है – क्या भारत उन्हें अपना पाएगा?

भारत की सड़कों की हकीकत – मारुति ने हाल ही में “गड्ढों वाली सड़कों पर चलने वाली कार” का ट्रायल किया। यानी समस्या को सुलझाने की जगह उसे स्थायी मान लिया गया।

बेंगलुरु में एक \$10,000 करोड़ की कंपनी खराब बुनियादी ढांचे से तंग आकर ऑफिस बंद कर चुकी है।

यानी जो देश अपने ही टैलेंट के लिए मूलभूत सुविधाएं नहीं जुटा पाता, वह लौटे हुए दिमागों को कैसे संभालेगा?

5. राजनीतिक और कूटनीतिक आयाम

मोदी–ट्रम्प दोस्ती के तमाम प्रचार के बावजूद, यह निर्णय भारत के लिए करारी चोट है।

पहले ही अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर 50% टैरिफ लगाया था। अब IT सेवाओं पर यह हमला “सॉफ्ट निर्यात” को भी चोट पहुँचा रहा है।

भारत के पास दो रास्ते हैं:

1. कूटनीतिक दबाव – G20, WTO जैसे मंचों पर इसे चुनौती देना।

2. घरेलू सुधार – लौटते टैलेंट को भारत में ही अवसर देने की ठोस तैयारी।

6. आगे का रास्ता

इस पूरे संकट ने एक सच्चाई सामने रख दी है:

 परदेस कभी वतन नहीं हो सकता।

प्रतिभा अगर देश में ही सम्मान और अवसर पाए तो वह पलायन क्यों करेगी?


भारत को चाहिए कि लौट रहे टैलेंट को स्टार्टअप्स, रिसर्च लैब्स, AI, क्वांटम और स्वास्थ्य क्षेत्र में जगह दे। नहीं तो यह “ब्रेन गेन” की जगह “ब्रेन ड्रेन” का नया दौर बन जाएगा।