G.S.T. : ‘मास्टरस्ट्रोक’ या कर-भार का पुनर्वितरण?

 लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला 

G.S.T. : ‘मास्टरस्ट्रोक’ या कर-भार का पुनर्वितरण?

1. विधिक और संवैधानिक दृष्टिकोण : वस्तु एवं सेवा कर (GST) भारत की स्वतंत्रता के बाद का सबसे बड़ा कर सुधार बताया गया। संवैधानिक दृष्टि से देखें तो 101वें संशोधन (2016) द्वारा संसद और राज्य विधानसभाओं से कर वसूलने की समवर्ती शक्ति GST परिषद को स्थानांतरित कर दी गई। इसे ‘सहकारी संघवाद’ का प्रतीक कहा गया, पर व्यवहार में यह ‘केंद्रीकृत संघवाद’ सिद्ध हुआ। राज्यों की राजस्व स्वायत्तता कमजोर हुई, मुआवज़े पर निर्भरता बढ़ी और परिषद के फैसले वस्तुतः केंद्र की इच्छानुसार तय होने लगे।

इस प्रकार संवैधानिक आदर्श और व्यवहारिक राजनीति के बीच एक गहरी खाई दिखती है। ‘एक राष्ट्र, एक कर’ का नारा भले ही आकर्षक लगे, परन्तु कराधान की स्वायत्तता खोने से संघीय ढांचे की आत्मा प्रभावित हुई है।

2. आर्थिक दृष्टिकोण : GST की टैक्स-स्लैब संरचना अत्यंत जटिल रही है। 28%, 18%, 12%, 5% और शून्य प्रतिशत जैसे विभाजन ने इसे सरल नहीं, बल्कि और उलझा दिया। अब 28% और 12% स्लैब हटाने की घोषणा को ‘मास्टरस्ट्रोक’ बताया जा रहा है। 

लेकिन वस्तुतः यह मात्र पुनर्वितरण है—

उच्च दर (28%) को घटाकर 18% करने से कुछ उद्योगों को राहत मिलेगी।

मध्य दर (12%) को बढ़ाकर 18% करने से अन्य सेक्टर पर बोझ बढ़ जाएगा।

  परिणामस्वरूप, उपभोक्ता को कोई वास्तविक राहत नहीं मिलती; केवल सरकार के राजस्व संतुलन का प्रबंधन होता है।

यह कदम अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ और वैश्विक बाज़ार की अस्थिरता से उत्पन्न आर्थिक झटकों को सँभालने की रणनीति है। उदाहरण के लिए, दवा उद्योग पर टैक्स घटाकर निर्यात में आई कमी की भरपाई करने का प्रयास किया जा रहा है।

3. सामाजिक दृष्टिकोण : आम जनता के लिए यह बदलाव न्यूनतम प्रभावकारी है। उपभोक्ता की जेब से निकलने वाला पैसा वही रहता है, बस उसका वितरण बदल जाता है।

दवा जैसी आवश्यक वस्तु पर टैक्स घटाने को बड़े मीडिया प्लेटफॉर्म ‘सरकार की संवेदनशीलता’ के रूप में प्रचारित करेंगे।

वहीं, सामान्य उपभोग की वस्तुओं पर टैक्स बढ़ने से मध्यवर्ग और निम्नवर्ग का जीवन और महँगा होगा।

इस परिघटना से स्पष्ट है कि GST का ‘भार’ अंततः जनता पर ही डाला जाता है, जबकि राहत केवल चुनिंदा उद्योग-क्षेत्रों और पूँजीगत हितों तक सीमित रहती है।

4. मीडिया की भूमिका : गोदी मीडिया की कार्यप्रणाली इस पूरे विमर्श का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। जब GST लागू हुआ, तब इसे ‘गब्बर सिंह टैक्स’ कहने वालों के स्वर दबा दिए गए और इसे ‘ऐतिहासिक मास्टरस्ट्रोक’ कहा गया। अब जब दरों में पुनर्वितरण हुआ है, तब भी वही शब्द दोहराए जा रहे हैं। मीडिया यहाँ सूचना देने का माध्यम नहीं, बल्कि राजनीतिक निर्णयों को वैचारिक रूप से ‘वैधता’ देने का औजार बन जाता है।

GST में किए गए हालिया बदलाव कोई ‘मास्टरस्ट्रोक’ नहीं, बल्कि कर-प्रणाली की त्रुटियों को सुधारने का प्रयास है। आमजन को इससे राहत मिलने की संभावना न्यूनतम है। यह नीति मूलतः सरकार के राजस्व संतुलन, अंतरराष्ट्रीय दबाव और उद्योग-हितैषी प्रबंधन के लिए है।

लोकतंत्र में कर नीति का मूल उद्देश्य जनकल्याण होना चाहिए, न कि राजस्व-संग्रह अधिकतमकरण। जब तक यह मूलभूत दृष्टिकोण नहीं बदलेगा, तब तक हर ‘सुधार’ जनता के लिए भार ही साबित होगा, राहत नहीं।