एआई शिक्षा : चीन की छलाँग और भारत के लिए सबक
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
एआई शिक्षा : चीन की छलाँग और भारत के लिए सबकचीन ने 1 सितम्बर 2025 से अपने प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) की पढ़ाई अनिवार्य कर दी है। यह केवल एक शैक्षिक सुधार नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ी को तकनीकी युग का नागरिक बनाने की दूरदृष्टि है। अब छह साल की उम्र से लेकर किशोरावस्था तक के लगभग 200 मिलियन छात्र हर वर्ष कम-से-कम आठ घंटे एआई पढ़ेंगे।
इस योजना का ढांचा बेहद व्यवस्थित है। छोटी कक्षाओं में बच्चे स्मार्ट उपकरणों के प्रयोग और सुरक्षित उपयोग को समझेंगे, मध्य कक्षाओं में एल्गोरिद्म और न्यूरल नेटवर्क जैसी बुनियादी अवधारणाओं से परिचित होंगे। माध्यमिक स्तर पर वे मॉडल तैयार करेंगे और जनरेटिव एआई की पड़ताल करेंगे, जबकि उच्च माध्यमिक में प्रोजेक्ट आधारित शिक्षा के तहत अपने स्वयं के एआई सिस्टम विकसित करने का अभ्यास करेंगे। साथ ही, नैतिक प्रयोग और जिम्मेदारी पर विशेष बल दिया जाएगा।
👉 वैश्विक संदर्भ
जनवरी 2025 में चीनी कंपनी डीपसीक द्वारा विकसित एआई मॉडल ने अमेरिकी टेक दिग्गजों को चुनौती दी थी। यह मॉडल मात्र 60 लाख डॉलर में बना, जबकि अमेरिकी कंपनियाँ अरबों डॉलर खर्च करती हैं। इसे “एआई का स्पुतनिक क्षण” कहा गया। आज चीन विश्व के 40% एआई शोध का केंद्र है और उसके पेटेंट अमेरिका की तुलना में दस गुना अधिक हैं। दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, एस्टोनिया, हांगकांग और यूएई जैसे देश भी अपनी शिक्षा नीतियों में एआई को शामिल कर रहे हैं, लेकिन चीन का कार्यक्रम कहीं अधिक व्यापक और महत्वाकांक्षी है।
👉 भारत की स्थिति
भारत ने अभी तक एआई शिक्षा को व्यवस्थित रूप से स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया है। नई शिक्षा नीति 2020 में डिजिटल और तकनीकी साक्षरता पर बल दिया गया है, परंतु एआई को अनिवार्य विषय के रूप में लागू करने की दिशा स्पष्ट नहीं है। कुछ निजी स्कूल और विश्वविद्यालय अवश्य प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कोई ठोस ढांचा नहीं है।
भारत की युवा आबादी हमारी सबसे बड़ी पूँजी है। यदि यह पीढ़ी एआई की भाषा में निपुण नहीं हुई, तो वैश्विक प्रतिस्पर्धा में हम पीछे छूट सकते हैं। आज हमारे इंजीनियर और वैज्ञानिक विश्व की तकनीकी कंपनियों में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। पर आने वाला दौर केवल सॉफ़्टवेयर लिखने का नहीं, बल्कि मशीनों को सोचने और निर्णय लेने योग्य बनाने का होगा।
👉 सीखने योग्य बातें
1. प्राथमिक स्तर से शुरुआत – एआई को उच्च शिक्षा का विषय मानने की गलती भारत नहीं कर सकता। बच्चों को प्रारंभ से ही इसकी बुनियादी समझ दी जानी चाहिए।
2. स्थानीय भाषाओं में सामग्री – भारत में एआई शिक्षा तभी सफल होगी जब इसे हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं में सुलभ बनाया जाए।
3. नैतिकता और रोजगार का संतुलन – एआई के प्रयोग से बेरोजगारी और गोपनीयता जैसे मुद्दे उठेंगे। शिक्षा में इन पहलुओं पर भी गंभीर संवाद आवश्यक है।
4. सरकार-उद्योग-संस्थान साझेदारी – केवल सरकार पर निर्भर रहने के बजाय उद्योग और शैक्षणिक संस्थानों को भी जिम्मेदारी निभानी होगी।
👉 भारत हेतु नीतिगत सुझाव (Policy Recommendations)
1. एआई को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में अनिवार्य करना
– प्राथमिक स्तर से ही एआई की बुनियादी जानकारी दी जाए। कक्षा 6 के बाद प्रोग्रामिंग, एल्गोरिद्म और मशीन लर्निंग की सरल शिक्षा अनिवार्य बने।
2. भारतीय भाषाओं में एआई शिक्षा सामग्री
– हिंदी, तमिल, बंगाली, मराठी, तेलुगु सहित प्रमुख भारतीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तकें और डिजिटल टूल्स तैयार हों, ताकि ग्रामीण व छोटे शहरों के छात्र भी पीछे न रहें।
3. शिक्षकों का प्रशिक्षण
– एआई साक्षरता केवल छात्रों तक सीमित नहीं होनी चाहिए। शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण देकर उन्हें “AI Facilitators” बनाया जाए।
4. स्कूल-उद्योग सहयोग
– भारतीय आईटी कंपनियाँ और स्टार्टअप्स मिलकर स्कूल स्तर पर एआई प्रयोगशालाएँ और इनोवेशन लैब स्थापित करें।
5. एआई नैतिकता और रोजगार पर जागरूकता
– पाठ्यक्रम में यह शामिल हो कि एआई का समाज, निजता, रोजगार और लोकतंत्र पर क्या असर होगा, ताकि विद्यार्थी सिर्फ तकनीकी दक्ष ही नहीं बल्कि जिम्मेदार नागरिक भी बनें।
6. ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों पर विशेष ध्यान
– डिजिटल डिवाइड को पाटने के लिए सरकार को ग्रामीण स्कूलों में इंटरनेट, स्मार्ट क्लासरूम और सस्ती एआई आधारित टूल्स उपलब्ध कराने होंगे।
7. राष्ट्रीय एआई प्रतियोगिता और प्रोत्साहन
– स्कूली स्तर पर हैकाथॉन, इनोवेशन चैलेंज और छात्रवृत्ति कार्यक्रम चलाकर प्रतिभा को सामने लाया जाए।
8. दीर्घकालिक दृष्टि : “AI for Bharat” मिशन
– जैसे चीन ने राष्ट्रीय स्तर पर रोडमैप बनाया है, वैसे ही भारत को भी शिक्षा, उद्योग और रक्षा—सभी क्षेत्रों को जोड़कर एक समग्र AI Mission 2030 तैयार करना चाहिए।
👉 इन नीतिगत कदमों से भारत न केवल एआई शिक्षा में आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना के साथ विश्व को भी दिशा दे सकेगा।
चीन का कदम यह स्पष्ट करता है कि 21वीं सदी की वैश्विक प्रतिस्पर्धा केवल रक्षा या अर्थव्यवस्था में नहीं, बल्कि बौद्धिक और तकनीकी सशक्तिकरण में तय होगी। भारत के लिए यह एक चेतावनी भी है और अवसर भी। यदि हम अभी पहल करें तो अपनी जनसंख्या-शक्ति को “एआई जनशक्ति” में बदल सकते हैं। अन्यथा, भविष्य की दौड़ में हम वही भूमिका निभाएँगे जो पिछली औद्योगिक क्रांति में उपनिवेशों की थी—सिर्फ उपभोक्ता, निर्माता नहीं।