लखनऊ: अवध कोकिला को श्रद्धांजलि : लोक संस्कृति की गूंजती चौपाल।
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
अवध कोकिला को श्रद्धांजलि : लोक संस्कृति की गूंजती चौपाललखनऊ : अवध की धरती पर लोकगायन को स्वर-सिद्धि प्रदान करने वाली संगीत विदुषी प्रो. कमला श्रीवास्तव की 94वीं जयंती पर आयोजित लोक चौपाल ने एक बार फिर उनकी स्मृतियों को जीवंत कर दिया। लोक संस्कृति शोध संस्थान की ओर से सोमवार को प्रेस क्लब में आयोजित इस आयोजन में साहित्यकारों, कलाकारों, समाजसेवियों और संगीतप्रेमियों ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री डॉ. विद्याविन्दु सिंह ने कहा— “कमला दीदी ने लोकगीतों की थाती सौंपकर अगली पीढ़ी को सांस्कृतिक धरोहर का अमूल्य उपहार दिया है।” वहीं लोकगायिका पद्मा गिडवानी, इन्दिरा श्रीवास्तव और अन्य वक्ताओं ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से जुड़े संस्मरण साझा किए। संस्था के अध्यक्ष जीतेश श्रीवास्तव ने विषय प्रवर्तन किया और राजेन्द्र विश्वकर्मा हरिहर ने संचालन संभाला।
आयोजन के दौरान वरिष्ठ साहित्यकार गोपाल चतुर्वेदी और डा. शम्भुनाथ को भी भावसुमन अर्पित किए गए। ज्योति कौल ने कहा कि कमला जी को मरणोपरांत पद्मश्री मिलना चाहिए था। प्रतिमा बाजपेयी ने उन्हें साहित्य और कला का वटवृक्ष कहा, जिसकी छांव आज भी सुकून देती है।
लोकगीतों की सांस्कृतिक प्रस्तुति ने चौपाल को रसविह्वल बना दिया। वन्दना शुक्ला की गणेश वंदना से आरंभ हुए इस क्रम में अंजलि सिंह ने चैती देवी गीत, इंजी. सुनील बाजपेयी ने गुरु भजन, नीरा मिश्रा ने बेटी जन्म का सोहर, स्नेहिल श्रीवास्तव ने भक्ति-गीत और रत्ना शुक्ला, संगीता खरे, साधना भारती, आशा श्रीवास्तव आदि ने अवध की माटी से जुड़े गीतों की प्रस्तुतियां दीं।
कार्यक्रम में सौरभ कमल, मनु राय, अल्पना श्रीवास्तव, सुरभि दुआ, देवेश्वरी पंवार, सीमा अग्रवाल, विद्याभूषण सोनी समेत अनेक कलाकारों ने अपनी श्रद्धांजलि स्वर और शब्द के रूप में अर्पित की।
विशेष आकर्षण रहा योगेश प्रवीन के लिखे और प्रो. कमला श्रीवास्तव द्वारा संगीतबद्ध गीत “नमो कालरात्रि नमो देवमाता” पर निवेदिता भट्टाचार्य के निर्देशन में अव्युक्ता, अमेया और कर्णिका का नृत्य। इस मनमोहक प्रस्तुति ने चौपाल को आध्यात्मिक ऊँचाई प्रदान की।
आभार ज्ञापन संस्था की सचिव डा. सुधा द्विवेदी ने किया।
इस प्रकार लोक चौपाल प्रो. कमला श्रीवास्तव की स्मृति को केवल श्रद्धांजलि ही नहीं, बल्कि एक जीवित सांस्कृतिक संवाद बना गई—जो अवध की माटी में गूंजता रहेगा।