नई दिल्ली: दिल्ली दंगों की साज़िश मामला : ज़मानत याचिकाओं पर हाई कोर्ट का फ़ैसला आज।

लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला 

दिल्ली दंगों की साज़िश मामला : ज़मानत याचिकाओं पर हाई कोर्ट का फ़ैसला आज

नई दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों की कथित साज़िश से जुड़े यूएपीए (ग़ैरक़ानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम) के मामले में लंबित ज़मानत अर्ज़ियों पर आज मंगलवार दोपहर 2:30 बजे निर्णय सुनाएगा। यह फ़ैसला जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की खंडपीठ सुनाएगी।

 अभियुक्त और मामला

ज़मानत पाने की कोशिश कर रहे अभियुक्तों में उमर ख़ालिद, शरजील इमाम, अतर ख़ान, ख़ालिद सैफ़ी, मोहम्मद सलीम ख़ान, शिफ़ा उर रहमान, मीरान हैदर, गुलफ़िशा फ़ातिमा और शादाब अहमद शामिल हैं। इन पर आरोप है कि इन्होंने फरवरी 2020 में हुए दंगों की साज़िश रची। पुलिस के अनुसार, दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें अधिकांश मुस्लिम समुदाय से थे, और 700 से अधिक लोग घायल हुए।

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा दर्ज यूएपीए केस में कुल 20 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था, जिनमें से 6 को पहले ही ज़मानत मिल चुकी है, 12 अब भी जेल में हैं और 2 फरार घोषित हैं।


 पुलिस का पक्ष

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार की ओर से तर्क दिया कि

 यह हिंसा "सामान्य दंगे" नहीं थी बल्कि सोची-समझी साज़िश, जिसका उद्देश्य भारत की संप्रभुता को ठेस पहुँचाना था।

 दंगों की तारीख़ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा से पहले तय की गई थी ताकि भारत को वैश्विक स्तर पर बदनाम किया जा सके।

 पुलिस ने दावा किया कि अभियुक्तों ने गुप्त बैठकों में हथियार इकट्ठा करने, सीसीटीवी तोड़ने और प्रदर्शनकारियों को मिर्च पाउडर व पत्थर बाँटने जैसी योजनाएँ बनाई थीं।

अभियोजन पक्ष ने 58 गवाहों के बयान पेश किए हैं, जिनकी पहचान गोपनीय रखी गई है।

 अभियुक्तों का पक्ष

अभियुक्तों ने दलील दी—

 वे 5 वर्षों से बिना ट्रायल जेल में बंद हैं, जबकि अब तक मुक़दमे की औपचारिक सुनवाई शुरू भी नहीं हुई।

 समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) का हवाला देते हुए कहा गया कि देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को इसी केस में ज़मानत मिल चुकी है।

 सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि मुक़दमे में अनुचित देरी होने पर अभियुक्त को ज़मानत मिलनी चाहिए।

 अभियुक्तों के वकीलों ने कहा कि पुलिस द्वारा पेश किए गए सबूत "परिस्थितिजन्य और अविश्वसनीय" हैं।

 उमर ख़ालिद के वकील त्रिदीप पाइस ने कहा कि उनके पास से कोई हथियार नहीं मिला और न ही उनके भाषणों में हिंसक उकसावे का प्रमाण है।

 शरजील इमाम के वकील ने तर्क दिया कि जनवरी 2020 में ही उनकी गिरफ़्तारी हो चुकी थी, जबकि दंगे फरवरी में भड़के।

संवैधानिक व विधिक परिप्रेक्ष्य

1. न्याय तक पहुँच और निष्पक्ष सुनवाई – अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है, जिसमें न्यायोचित मुक़दमा और अनुचित हिरासत से मुक्ति भी शामिल है।

2. समानता का अधिकार – अनुच्छेद 14 के आधार पर अभियुक्तों ने तर्क दिया कि समान परिस्थितियों में कुछ अभियुक्तों को ज़मानत मिलने पर बाक़ी को भी उसका लाभ मिलना चाहिए।

3. यूएपीए की कठोरता – इस कानून में ज़मानत पाना अत्यंत कठिन है क्योंकि धारा 43(D)(5) अभियुक्त को राहत देने से पहले अदालत को यह संतुष्ट होने की बाध्यता देती है कि उसके ख़िलाफ़ प्रथम दृष्टया कोई केस नहीं बनता।

4. सामाजिक परिप्रेक्ष्य – यह मामला केवल विधिक नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी संवेदनशील है। एक ओर, पीड़ित परिवारों को न्याय की उम्मीद है, वहीं दूसरी ओर, लंबे समय तक बिना ट्रायल जेल में बंद रहना मानवाधिकार के सवाल खड़े करता है।

 पृष्ठभूमि :

फरवरी 2020 के दंगे नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) और एनआरसी विरोध प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में भड़के थे। पुलिस का कहना है कि हिंसा चार चरणों में योजनाबद्ध ढंग से फैलाई गई। हालांकि, अभियुक्त पक्ष इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित केस बताते हुए अपनी निर्दोषता पर ज़ोर देता है।

👉 आज का फ़ैसला इस मामले में केवल अभियुक्तों की ज़मानत तक सीमित नहीं होगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि अदालतें न्याय, सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन कैसे साधती हैं।