दक्षिण एशिया: लोकतंत्र की राजनीति या अमेरिकी स्क्रिप्ट का खेल?
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
दक्षिण एशिया: लोकतंत्र की राजनीति या अमेरिकी स्क्रिप्ट का खेल?“दक्षिण एशिया का लोकतंत्र आज विदेशी ‘गोद’ में बैठा हुआ बच्चा लगता है—न आत्मनिर्भर, न स्वाधीन, बस IMF और व्हाइट हाउस की झिड़की पर चलने वाला।”
यही कटुसत्य है जिसे नजरअंदाज करने की भारत जैसी बड़ी शक्ति भी हिम्मत नहीं कर सकती।
# श्रीलंका: दिवालिया राष्ट्र और IMF का शिकंजा
2022 में शुरू हुए आर्थिक संकट ने श्रीलंका को दिवालिया घोषित कर दिया। विदेशी कर्ज 83 अरब डॉलर तक पहुँच गया और IMF ने 3 अरब डॉलर का पैकेज थमाया। कीमत? VAT 8% से बढ़ाकर 18%, पेट्रोल-डीज़ल पर 40% महँगाई, और जनता के जीवन पर असहनीय बोझ। 2024 में अनुरा कुमारा दिसानायके राष्ट्रपति बने, लेकिन IMF की शर्तें आज भी गले की फाँस बनी हुई हैं। श्रीलंका की सड़कों पर अब भी यह सवाल गूँजता है—क्या यह ‘सहायता’ है या नई गुलामी? भारत ने 3.8 अरब डॉलर की मदद देकर कुछ राहत दी, पर अमेरिका-IMF का मॉडल श्रीलंका को पश्चिमी कर्ज़-जाल में धकेल चुका है।
# बांग्लादेश: आंदोलन की आग और हसीना का पतन
जनवरी 2024 में शेख हसीना ने फिर चुनाव जीता, लेकिन विपक्षी बहिष्कार और धांधली के आरोपों ने माहौल बिगाड़ दिया। जुलाई-अगस्त में शुरू हुए छात्र आंदोलन में 1,400 से अधिक मौतें हुईं, बेरोजगारी 12% पर पहुँच गई और अंततः 5 अगस्त को हसीना भागकर भारत आ गईं। अमेरिका का हस्तक्षेप साफ दिखा—मानवाधिकार उल्लंघन के नाम पर दबाव, IMF का 4.7 अरब डॉलर पैकेज और “लोकतंत्र बहाली” का प्रचार।
आज नोबेल विजेता मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार सत्ता में है, लेकिन BNP और जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टर दलों की सक्रियता भारत के लिए खतरे की घंटी है। क्योंकि हसीना भारत-समर्थक थीं, और नई सरकार भारत की सुरक्षा और सीमाओं के लिए अस्थिरता ला सकती है।
# नेपाल: 2025 का जनरेशन Z विद्रोह
नेपाल की राजनीति लंबे समय से अस्थिर रही है—2008 के बाद 14 सरकारें बदलीं। 2025 में सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ शुरू हुआ जनरेशन Z आंदोलन भ्रष्टाचार-विरोधी क्रांति में बदल गया। 9 सितंबर को प्रधानमंत्री KP शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया, संसद भवन जला, 22 मौतें हुईं और जेलों से 13,000 कैदी फरार हो गए।
यह बांग्लादेश 2024 की पुनरावृत्ति थी। अमेरिका ने “लोकतांत्रिक सुधार” का समर्थन किया, लेकिन नेपाल में असली मुद्दा बेरोजगारी (12.7%), महँगाई (7.5%) और भ्रष्टाचार है। भारत के लिए यह सबसे बड़ा खतरा है क्योंकि नेपाल से 1,700 किमी लंबी खुली सीमा भारत की सुरक्षा को सीधा प्रभावित करती है।
# पाकिस्तान: सौदेबाजी का नया दौर
पाकिस्तान का कर्ज 6.5 अरब डॉलर IMF पर बकाया है। 2024 के चुनाव विवादित रहे और इमरान खान की पार्टी PTI को किनारे कर दिया गया। शहबाज शरीफ सरकार ने अमेरिका से रिश्ते सुधारे—आर्मी चीफ आसिम मुनीर का व्हाइट हाउस दौरा, आतंकवाद-रोधी सहयोग और तेल-खनिज सौदे। लेकिन यह सब “ट्रांजेक्शनल” है।
खान के समर्थक कहते हैं कि उनकी गिरफ्तारी के पीछे अमेरिका है। भारत की चिंता यहाँ यह है कि अमेरिका-पाक गठजोड़ कश्मीर और आतंकवाद पर दबाव बढ़ा सकता है।
# अमेरिका का एजेंडा या आंतरिक कमजोरी?
इन चारों देशों में एक पैटर्न दिखता है—IMF पैकेज, अमेरिकी दबाव, और राजनीतिक अस्थिरता। श्रीलंका और बांग्लादेश में आर्थिक संकट, नेपाल में छात्र आंदोलन, पाकिस्तान में सैन्य-राजनीतिक सौदेबाजी। सवाल यह है कि क्या यह सब अमेरिकी स्क्रिप्ट है या इन देशों की अपनी भ्रष्ट और असफल राजनीति का नतीजा? सच यही है कि अमेरिका इन संकटों का इस्तेमाल चीन को काउंटर करने के लिए करता है—श्रीलंका के बंदरगाह, नेपाल का BRI, बांग्लादेश का लोकतंत्र और पाकिस्तान का आतंकवाद।
# भारत की बेचैनी—क्या चेतावनी को समझेगा?
भारत के नेता इसे सिर्फ समाचार नहीं, बल्कि चेतावनी मान रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा—“क्षेत्रीय स्थिरता हमारी प्राथमिकता है।”
राहुल गांधी ने संसद में कहा—“पड़ोसी की अस्थिरता सीमा पर खतरा है।”
थिंक टैंक ORF और VIF के विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सब चीन को रोकने का अमेरिकी खेल है।
लेकिन कटुसत्य यही है कि पड़ोसी देशों की राजनीतिक आग भारत की सीमाओं तक आए बिना नहीं रहेगी। नेपाल की अराजकता से शरणार्थी भारत की ओर आएँगे, बांग्लादेश की अस्थिरता से सीमा पर चरमपंथ बढ़ेगा, पाकिस्तान की सौदेबाजी से सुरक्षा पर दबाव होगा।
# भारत के सामने कठिन विकल्प
भारत चाहे तो दर्शक बनकर अमेरिकी स्क्रिप्ट पर चल रहे इस नाटक को देखता रहे, या फिर खुद निर्देशक की कुर्सी पर बैठकर कहानी को नया मोड़ दे। मजबूत पड़ोस नीति, आर्थिक सहयोग और वास्तविक लोकतांत्रिक समर्थन ही रास्ता है।
“दक्षिण एशिया की राजनीति आज अमेरिकी स्क्रिप्ट पर लिखी जा रही है—किरदार बदलते हैं, मंच बदलता है, लेकिन निर्देशक वही रहता है। भारत चाहे तो ताली बजाए, या फिर स्क्रिप्ट फाड़कर कहानी अपने हाथ में ले।”