"सहारा से अदानी तक: भारत की आर्थिक व्यवस्था की अगली परीक्षा"

 लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला 


"सहारा से अदानी तक: भारत की आर्थिक व्यवस्था की अगली परीक्षा"

भारत की आर्थिक व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव सामने है। कभी साम्राज्य की तरह फैला सहारा समूह आज न्यायिक निगरानी में है और उसकी संपत्तियों का अधिग्रहण अदानी समूह द्वारा होने की संभावना जताई जा रही है। सुप्रीम कोर्ट की मुहर इस डील को अंतिम रूप दे सकती है।

# निवेशकों की छटपटाहट

लाखों निवेशक वर्षों से अपनी जमा पूंजी की वापसी का इंतज़ार कर रहे हैं। सहारा–सेबी विवाद ने उनकी ज़िंदगी रोक दी है। घरों की बचत, रिटायरमेंट की योजनाएँ और भविष्य की उम्मीदें कानूनी उलझनों में अटकी रहीं। इस सौदे में यदि उन्हें राहत मिलती है तो यह न्यायपालिका के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी।

# कर्मचारियों की स्थिति

सहारा मीडिया और अन्य इकाइयों के कर्मचारी महीनों से वेतनविहीन हैं। कुछ आंदोलन कर रहे हैं, कुछ ने नौकरी छोड़ दी, और बाकी जीविका के संकट में हैं। किसी भी डील का असली परीक्षण इस बात से होगा कि क्या ये कर्मचारी अपनी न्यूनतम अधिकारिक सुरक्षा पा सकेंगे।

# अदानी का विस्तार

अदानी समूह का रुख साफ़ है: तेज़ी से विविध क्षेत्रों में पैर पसारना। सहारा की 88 संपत्तियाँ – रियल एस्टेट से लेकर हॉस्पिटैलिटी तक – इस विस्तार की कड़ी बनेंगी। सवाल यह है कि क्या यह अधिग्रहण केवल एक और कॉरपोरेट समेकन होगा, या फिर एक सामाजिक उत्तरदायित्व की मिसाल भी?

# न्यायपालिका की परीक्षा

सौदे के पारदर्शी और न्यायसंगत निष्पादन पर पूरी नज़र रहेगी। सुप्रीम कोर्ट को यह सुनिश्चित करना होगा कि मूल्यांकन निष्पक्ष हो और प्राथमिकता निवेशकों व कर्मचारियों को दी जाए। यदि प्रक्रिया केवल शक्तिशाली समूहों के हित में झुकी दिखी, तो यह भारत की न्यायिक और नियामक साख पर प्रश्न खड़ा करेगा।

# निष्कर्ष

सहारा से अदानी तक की यह यात्रा केवल संपत्तियों का हस्तांतरण नहीं है। यह तय करेगी कि भारत की आर्थिक प्रणाली किसकी है—कॉरपोरेट दिग्गजों की या उन साधारण नागरिकों की, जिन्होंने अपनी बचत इस व्यवस्था पर भरोसा करके लगाई थी।