अद्भुत एवं दिव्य ग्रंथ : श्रीमद्भगवद्गीता
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
अद्भुत एवं दिव्य ग्रंथ : श्रीमद्भगवद्गीताश्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का शाश्वत मार्गदर्शक है। यह हमें सिखाती है कि जीवन न तो केवल भोग के लिए है, न ही पलायन के लिए, बल्कि कर्तव्य, आत्मज्ञान और ईश्वर-समर्पण के लिए है। गीता की शिक्षा मनुष्य को आत्मविश्वास देती है कि वह चाहे कितनी भी बड़ी विपत्ति में हो, यदि मन स्थिर और बुद्धि दृढ़ हो, तो विजय निश्चित है।
1. गीता : जीवन और मृत्यु का रहस्य
गीता हमें केवल जीना ही नहीं, बल्कि मरना भी सिखाती है। यह बताती है कि मृत्यु अंत नहीं, बल्कि नए जीवन का द्वार है।
🔸 दार्शनिक दृष्टि से : गीता मृत्यु को भय नहीं, बल्कि परिवर्तन मानती है।
🔸 मनोवैज्ञानिक दृष्टि से: यह शिक्षा हमें मृत्यु-भय से मुक्त कर आत्मविश्वास देती है।
श्लोक :
“जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।” (2.27)
2. गीता : संपूर्ण मानवता की धरोहर
यद्यपि गीता हिन्दू धर्म का ग्रंथ है, किंतु इसका संदेश जाति, धर्म, देश और काल से परे है।
🔸 सामाजिक दृष्टि से : यह सबमें समानता और बंधुत्व की भावना उत्पन्न करती है।
🔸 आध्यात्मिक दृष्टि से : यह आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है।
श्लोक :
“विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि… पण्डिताः समदर्शिनः॥” (5.18)
3. गीता जयंती का महत्व
मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का दिन इस बात का प्रतीक है कि ज्ञान का प्रकाश हर युग में आवश्यक है।
🔸 यह हमें याद दिलाता है कि संकट की घड़ी में ज्ञान ही सबसे बड़ा सहारा है।
श्लोक:
“इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।” (4.1)
4. गीता : अनुपम महिमा का प्रमाण
यह एकमात्र ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है।
🔸 इसका अर्थ है – गीता केवल शब्दों में नहीं, बल्कि जीवन-उत्सव है।
श्लोक :
“स यज्ञात्सर्वलोकानां मित्रं पितेव सर्वभूतानाम्।”
5. युद्धभूमि से उपजा अमृत
गीता का उपदेश युद्धभूमि में हुआ, जो यह दर्शाता है कि ज्ञान जीवन के संघर्षों के बीच ही सार्थक होता है।
🔸 मनोवैज्ञानिक दृष्टि से : यह मनुष्य को कठिन परिस्थिति में भी स्थिर रहने का मार्ग दिखाती है।
श्लोक :
“क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।” (2.3)
6. 18 अध्याय और 18 दिन का युद्ध
संयोग ही नहीं, यह संकेत है कि आध्यात्मिक और लौकिक युद्ध दोनों संतुलित रूप से चलते हैं।
🔸 यह हमें सिखाता है कि जीवन में संघर्ष और ज्ञान दोनों आवश्यक हैं।
श्लोक :
“एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत।” (15.20)
7. अर्जुन के बहाने मानवता को संदेश
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया, लेकिन वास्तव में यह सम्पूर्ण मानवता के लिए मार्गदर्शन है।
श्लोक :
“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।” (18.66)
8. कर्म ही धर्म है
गीता का सबसे बड़ा संदेश है – कर्मयोग।
🔸 मनोवैज्ञानिक दृष्टि से : यह मनुष्य को निष्क्रिय नहीं, बल्कि कर्मठ और सकारात्मक बनाती है।
श्लोक :
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” (2.47)
9. 700 श्लोक : जीवन-समाधान
हर श्लोक जीवन की किसी न किसी समस्या का समाधान देता है।
🔸 यह आधुनिक प्रबंधन, मनोविज्ञान और नेतृत्व के लिए भी मार्गदर्शक है।
श्लोक :
“उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।” (6.5)
10. गीता : विजय और धर्म का प्रतीक
जहाँ कृष्ण और अर्जुन (ज्ञान और कर्म) साथ हों, वहाँ विजय और धर्म अवश्य होता है।
श्लोक :
“यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।” (18.78)
👉 गीता हमें बताती है कि –
जीवन पलायन नहीं, पुरुषार्थ है।
सच्चा धर्म कर्तव्य है।
और सच्चा सुख ईश्वर की शरण में है।
हे प्रभु श्रीकृष्ण!
हमें गीता के उपदेशों को जीवन में उतारने की शक्ति दीजिए।
हमारे मन से मोह, क्रोध, लोभ और भय दूर कीजिए।
हमें धर्म, कर्तव्य और समर्पण के पथ पर चलने का साहस दीजिए।
॥ जय श्रीकृष्ण ॥
॥ हरि ॐ तत्सत् ॥