एनजीओ और सरकार: संदेह से सम्मान तक का सफ़र

लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला


एनजीओ और सरकार: संदेह से सम्मान तक का सफ़र

भारत में गैर-सरकारी संगठनों (NGO) की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। चाहे शिक्षा का विस्तार करना हो, पर्यावरण संरक्षण की बात हो या स्वास्थ्य सेवाओं को गाँव-गाँव पहुँचाना हो—एनजीओ वहाँ सक्रिय रहते हैं जहाँ अक्सर सरकारी मशीनरी नहीं पहुँच पाती।

लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सरकार की ओर से एनजीओ के प्रति जिस तरह की नकारात्मकता और अविश्वास फैलाया गया, उसने इस पूरे क्षेत्र की साख पर सवाल खड़े कर दिए। विदेशी फंडिंग रोकना, पंजीकरण रद्द करना और “देशविरोधी गतिविधियों” में शामिल होने जैसे आरोप लगाकर कई संगठनों का काम अचानक ठप कर दिया गया। यह सही है कि कुछ एनजीओ अनियमितताओं में लिप्त पाए गए हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सभी संगठनों पर एक ही नजर से देखा जाए।

दरअसल, हकीकत यह है कि अनेक ऐसे एनजीओ हैं जो बेहद दुर्गम और पिछड़े इलाकों में काम कर रहे हैं—जहाँ न सरकारी स्कूल ठीक से चल पाते हैं, न स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँच पाती हैं। ‘Educate Girls’ ऐसा ही एक संगठन है, जिसने यह साबित कर दिखाया है कि अगर नीयत और मेहनत साफ़ हो तो बदलाव लाना असंभव नहीं।

‘एजुकेट गर्ल्स’ : शिक्षा से बदलाव की कहानी

‘Educate Girls’ की स्थापना सफ़ीना हुसैन ने की थी। उन्हें इसकी प्रेरणा एक बेहद साधारण लेकिन गहरी घटना से मिली।

एक बार उन्होंने एक स्कूल न जाने वाली बच्ची से पूछा— “तुम बड़ी होकर क्या बनना चाहती हो?”

लड़की का जवाब था— “मुझसे यह सवाल कभी किसी ने पूछा ही नहीं।”

यह जवाब सफ़ीना हुसैन के दिल को झकझोर गया। उन्होंने ठान लिया कि लाखों ऐसी बच्चियों तक शिक्षा का अधिकार पहुँचाना होगा जिनके सपनों को समाज ने दबा रखा है। आज वही बच्ची स्कूल में पढ़ रही है और पुलिस अधिकारी बनने का सपना देख रही है। यही शिक्षा की असली ताक़त है—सपनों को जन्म देने की ताक़त।

 रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड 2025: वैश्विक पहचान

‘एजुकेट गर्ल्स’ के कार्यों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है। यह संगठन एशिया का नोबेल पुरस्कार कहे जाने वाले “रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड 2025” के विजेताओं में शामिल किया गया है। यह सम्मान न केवल संगठन की उपलब्धि है, बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व का क्षण है।

सफ़ीना हुसैन कहती हैं— “यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। अगले दशक में एक करोड़ शिक्षार्थियों तक पहुँचने और इस योजना को भारत से परे ले जाने का लक्ष्य है। जब एक लड़की शिक्षित होती है, तो वह अपने परिवार, समुदाय और आने वाली पीढ़ियों में रोशनी फैलाती है।”

 सरकार और समाज के लिए सबक

यह हमें दो बड़े सबक देती है—

1. सभी एनजीओ संदिग्ध नहीं होते। कुछ संगठन ही देश के कोने-कोने में वह काम कर रहे हैं, जो सरकारें वर्षों में भी नहीं कर पातीं।

2. शिक्षा ही असली बदलाव का माध्यम है। खासकर लड़कियों की शिक्षा समाज को बहुआयामी विकास की ओर ले जाती है।

सरकार अगर सहयोग की मानसिकता अपनाए और निगरानी को संतुलित ढंग से लागू करे, तो एनजीओ और प्रशासन मिलकर देश की सबसे कठिन चुनौतियों का समाधान खोज सकते हैं।

आज जबकि कई संस्थाएँ शक और निगरानी के बोझ तले दब रही हैं, ‘एजुकेट गर्ल्स’ जैसी कहानियाँ उम्मीद जगाती हैं। यह हमें याद दिलाती हैं कि लोकतंत्र का असली सौंदर्य तभी प्रकट होता है जब सरकार, समाज और नागरिक संगठन मिलकर काम करें।