जीवन का प्रवाह और भरपूर अस्तित्व

 लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला 

जीवन का प्रवाह और भरपूर अस्तित्व

दुनिया को देखने के दो नजरिए प्रचलित हैं—एक मानता है कि संसार जैसा है, वैसा ही चलता रहना चाहिए; दूसरा सोचता है कि किसी एक दिन सब कुछ अचानक बदल जाएगा। किंतु जीवन का सच इन दोनों के बीच है। न तो यह ठहरता है, न ही किसी जादुई क्षण में उलट-पलट हो जाता है। परिवर्तन यहाँ अनिवार्य है, पर वह धीरे-धीरे, संघर्षों और मेल-मिलाप की प्रक्रिया से आता है।

# इतिहास की धड़कन

हर युग इस सत्य का साक्षी है। कोई व्यवस्था, कितनी भी सुदृढ़ क्यों न लगे, अपने भीतर विरोधाभास समेटे रहती है। वही विरोधाभास एक दिन नई व्यवस्था को जन्म देता है। साम्राज्य उठते हैं, गिरते हैं, और मनुष्य आगे बढ़ता है। जहाँ स्थिरता का भ्रम है, वहीं भीतर हलचल है। यही हलचल विकास की भूमिका रचती है।

# मनुष्य का असंतोष: दोष नहीं, शक्ति

मनुष्य का जीवन भी इसी नियम का अनुयायी है। जब एक उपलब्धि मिलती है, उसी क्षण एक नई आकांक्षा जन्म लेती है। यह असंतोष कोई कमी नहीं, बल्कि वही ऊर्जा है जिसने हमें आदिम गुफाओं से निकालकर आधुनिक सभ्यता तक पहुँचाया। अगर मनुष्य पूरी तरह संतुष्ट हो जाता, तो न कला जन्म लेती, न विज्ञान, न विचार।

# भरपूर जीवन का अर्थ

भरपूर जीवन केवल सुख-भोग नहीं है। यह अपने समय को समझने, अपनी परिस्थितियों को बदलने और उस संघर्ष में भागीदारी करने का नाम है, जो मानवता को आगे बढ़ाता है।

  •  यह परिवार की जिम्मेदारी निभाने में है।
  •  यह समाज के अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने में है।
  •  यह विचारों की स्वतंत्रता और सृजन की राह खोजने में है।

भरपूर जीना मतलब वर्तमान को पकड़ना है—क्योंकि अतीत स्मृति है, भविष्य कल्पना है, लेकिन निर्माण की वास्तविक भूमि केवल वर्तमान है।

# सुख-दुख का संतुलन

जीवन की सुंदरता उसकी द्वंद्वात्मकता में है। केवल सुख होता तो वह अर्थहीन हो जाता; केवल दुख होता तो असह्य। दोनों का संगम ही जीवन को संपूर्ण बनाता है। यही संतुलन हमें गहराई और विस्तार देता है।

# व्यक्तिगत से सामूहिक तक

अक्सर लगता है कि हमारी छोटी कोशिशें समाज पर कोई असर नहीं डालेंगी। लेकिन परिवर्तन का इतिहास इन्हीं छोटे-छोटे प्रयत्नों का योग है। कलाकार की ईमानदारी, शिक्षक की प्रेरणा, मजदूर का श्रम—यही सब मिलकर मानवता की गाड़ी को आगे बढ़ाते हैं। व्यक्तिगत योगदान ही सामूहिक आंदोलन की जड़ है।

# जीवन की निरंतरता

दुनिया स्थिर नहीं रहती। वह निरंतर गतिशील है—संघर्ष, विरोध और आकांक्षा उसकी आत्मा हैं। भरपूर जीवन जीने का अर्थ है इस प्रवाह को समझना, उसे स्वीकारना और उसमें सक्रिय भागीदार बनना। यही हमें हताशा से बचाता है और अंधी आशा से भी। यही हमें वास्तविकता से जोड़ता है और बताता है कि परिवर्तन संभव है—पर वह केवल हमारे इंतजार से नहीं आएगा।

हमें उसमें हिस्सा लेना होगा, संघर्ष करना होगा, और जीवन को उसके पूरे विस्तार के साथ जीना होगा। यही भरपूर जीवन है।