पीढ़ियों की नदी और भविष्य का आकाश
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
पीढ़ियों की नदी और भविष्य का आकाशहर पीढ़ी एक नदी की तरह है—अपनी धारा लेकर आती है, अपने रास्ते गढ़ती है, और फिर अगली धारा को सौंप देती है। लेकिन अक्सर पुरानी धारा यह मान बैठती है कि अगली धारा मटमैली है, दिशाहीन है। वे भूल जाते हैं कि वही धारा आगे चलकर सागर तक पहुँचेगी।
# सभ्यता का वृक्ष
जब कोई बच्चा जन्म लेता है, तो वह खाली हाथ नहीं आता। वह सभ्यता के उस वृक्ष की शाख पर जन्म लेता है, जिसे असंख्य पूर्वजों ने अपने खून-पसीने से सींचा है। भाषा उसकी जड़ों से आती है, विज्ञान उसकी शाखाओं से, और कला उसकी पत्तियों से। बच्चा उसी वृक्ष पर चढ़कर और ऊपर देखता है—उस आकाश की ओर, जहाँ अब तक कोई नहीं पहुँचा।
# टकराव के बीज
पुरानी पीढ़ी अपने संघर्ष को ही संसार का सत्य मानती है। खेतों की धूल, कठिन परिश्रम, भूख और अभाव उन्हें गौरव प्रतीत होते हैं। जबकि नई पीढ़ी कहती है—“जो कठिनाई तुमने झेली, वही अगर हमने भी झेली तो क्या बदला?”
यहीं से टकराव जन्म लेता है। पुराने लोग इसे "आलस्य" कहते हैं, नई पीढ़ी इसे "नया सपना"।
समय की अग्नि
Gen X, Millennials और Gen Z—ये नाम केवल लेबल नहीं हैं, यह समय की अग्नि में ढले हुए अलग-अलग रूप हैं।
- Gen X राख से उठी चिंगारी थे।
- Millennials वह लौ बने जिन्होंने पुरानी राख को जलाए रखा।
- Gen Z अब वह आग है जो नई दिशाओं में फैल रही है—इंटरनेट, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, जलवायु संकट और समानता के सवालों की ओर।
आकाश की ओर उड़ान
इतिहास गवाह है कि हर बार बच्चों को "बिगड़ा हुआ" कहा गया, और हर बार उन्होंने भविष्य का द्वार खोला।
खेत छोड़कर कारखानों में गए तो आलसी कहे गए, लेकिन वही औद्योगिक युग के निर्माता बने।
स्त्रियों ने शिक्षा की माँग की तो उन्हें पागल कहा गया, लेकिन वही आगे चलकर समाज की आधी दुनिया को मुक्त करने वाली चाबी बनीं।
नई पीढ़ी दरअसल आकाश की ओर उड़ता हुआ वह पक्षी है, जिसे ज़मीन से देख रहे लोग अक्सर यह समझते हैं कि वह रास्ता भटक गया है। लेकिन असलियत यह है कि उसकी आँखें उस क्षितिज पर हैं जहाँ तक अभी तक कोई नहीं पहुँचा।
अनुभव की सीमा और संभावना का गीत
बुज़ुर्ग अपने अनुभव को पूंजी मानते हैं, लेकिन समय बदलने के साथ वह पूंजी सिक्कों की तरह बेमोल भी हो सकती है।
नई पीढ़ी पुराने सिक्कों से नहीं, नई मुद्राओं से लेन-देन करती है—ज्ञान, तकनीक, और स्वतंत्रता की नई भाषाओं से।
नदी, अग्नि और आकाश
हर पीढ़ी पिछली से आगे बढ़ती है। जो कल असंभव था, वह आज सामान्य है, और जो आज असंभव लगता है, वह कल की सामान्य ज़िंदगी बनेगा।
इसलिए अगली पीढ़ी को नकारना, भविष्य के सूरज को नकारना है। वे हमारी धारा को सागर तक ले जाएँगी, हमारी अग्नि को मशाल बनाएँगी, और हमारे सपनों को आकाश में नए सितारे बना देंगी।
यह संस्करण तर्क को नहीं खोता, लेकिन उसे प्रतीकों (नदी, वृक्ष, अग्नि, आकाश, पक्षी) के सहारे काव्यात्मक बना देता है।