सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय : मोटर वाहन टैक्स सिर्फ़ ‘सार्वजनिक उपयोग’ तक सीमित
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय : मोटर वाहन टैक्स सिर्फ़ ‘सार्वजनिक उपयोग’ तक सीमित
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिए अपने एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में यह स्पष्ट कर दिया है कि मोटर वाहन कर केवल उन्हीं वाहनों पर लगाया जा सकता है जो सार्वजनिक स्थानों पर चलाए जाते हैं या जिन्हें सार्वजनिक स्थानों पर चलाने के लिए रखा गया है। यदि कोई वाहन केवल किसी निजी परिसर, बंद औद्योगिक क्षेत्र अथवा गेटेड परिसर में चलता है, तो उस पर मोटर वाहन टैक्स लगाने का कोई संवैधानिक या वैधानिक आधार नहीं है।
मामला और विवाद की जड़
ताराचंद लॉजिस्टिक्स सॉल्यूशंस लिमिटेड के 36 वाहन केवल विशाखा स्टील प्लांट के भीतर ही चलते थे। यह परिसर पूर्णत: गेटेड और प्रतिबंधित है, जहाँ बिना अनुमति कोई बाहरी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता। कंपनी का तर्क था कि चूँकि ये वाहन जनता के उपयोग हेतु उपलब्ध नहीं हैं और न ही सार्वजनिक सड़कों पर चलते हैं, इसलिए उन पर मोटर वाहन टैक्स लागू नहीं हो सकता।
स्थानीय अदालत ने कंपनी की दलील को सही माना और सरकार को टैक्स वापस करने का आदेश दिया। किंतु उच्च न्यायालय ने इस निर्णय को पलटते हुए टैक्स भुगतान को अनिवार्य कर दिया। अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, जहाँ न्यायालय ने व्यापक विवेचना के बाद यह ठोस रुख अपनाया।
सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या
अदालत ने कहा—
‘सार्वजनिक स्थान’ वही है जहाँ सामान्य जन को आने-जाने या उपयोग करने का कानूनी अधिकार है।
किसी औद्योगिक परिसर या गेटेड प्राइवेट क्षेत्र, जो केवल अधिकृत व्यक्तियों तक सीमित हो, को ‘सार्वजनिक स्थान’ नहीं माना जा सकता।
टैक्स लगाने का अधिकार केवल वैधानिक प्रावधानों के तहत ही है; सरकारें इसे मनमाने ढंग से नहीं बढ़ा सकतीं।
व्यापक प्रभाव
यह फ़ैसला केवल ताराचंद लॉजिस्टिक्स तक सीमित नहीं रहेगा। पूरे देश में जिन कंपनियों के वाहन केवल निजी परिसरों या बंद औद्योगिक क्षेत्रों में उपयोग होते हैं, वे अब टैक्स छूट के पात्र होंगे। इससे:
कंपनियों की लागत में कमी आएगी,
व्यापारिक सुगमता (Ease of Doing Business) बढ़ेगी,
और टैक्स प्रशासन की मनमानी पर रोक लगेगी।
संवैधानिक दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पुन: दोहराया कि ‘टैक्सेशन बिना विधि के संभव नहीं’ (No taxation without authority of law)। यह सिद्धांत भारतीय संविधान की आत्मा है। इस आदेश ने कराधान के क्षेत्र में एक बार फिर यह संदेश दिया है कि सरकारें अपनी सीमा से बाहर जाकर उद्योगों पर अतिरिक्त बोझ नहीं डाल सकतीं।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय केवल एक कर विवाद का समाधान नहीं है, बल्कि कर-प्रशासन में पारदर्शिता और विधि-प्रधानता का मार्गदर्शक भी है। अब यह साफ़ है कि मोटर वाहन कर का दायरा केवल सार्वजनिक उपयोग तक सीमित है—निजी परिसरों की चारदीवारी के भीतर चलने वाले वाहनों पर नहीं।