नकली क्रांतियाँ और डीप स्टेट की चाल: नेपाल से भारत तक खतरे की दस्तक
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
नकली क्रांतियाँ और डीप स्टेट की चाल: नेपाल से भारत तक खतरे की दस्तकदक्षिण एशिया एक बार फिर अराजकता की आग में घिरा है। नेपाल की सड़कों पर “युवा क्रांति” का शोर मचाया जा रहा है, लेकिन इस शोर के पीछे जो साज़िशें छिपी हैं, उन्हें पहचानना ज़रूरी है।
# कम्युनिज़्म का मुखौटा और असली चेहरा
नेपाल और भारत के माओवादी नेताओं पर वर्षों से "चीन समर्थक" का लेबल चिपकाया जाता रहा है। लेकिन कटु सत्य यह है कि चीन में माओवाद पिछले 46 साल से प्रतिबंधित है। असली खेल कहीं और है—ये आंदोलन वैचारिक कम, राजनीतिक ठेकेदारी ज़्यादा हैं। इनमें कई नेताओं का झुकाव ईसाई मिशनरियों की तरफ रहा है, और विदेशी एजेंसियाँ इन्हें अपने पाले में रखने के लिए इस्तेमाल करती रही हैं।
# ब्रिटेन और गोरखा फैक्टर
यह भी याद रखना चाहिए कि नेपाल का आधुनिक नक्शा ब्रिटेन की ज़रूरत से बना था। 1815 की सुगौली संधि के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने नेपाल को “बफर स्टेट” बनाया ताकि गोरखा सैनिकों को अपनी सेना में शामिल किया जा सके। यानी नेपाल का अस्तित्व ही साम्राज्यवादी सैन्य ज़रूरत से जुड़ा है। आज वही औपनिवेशिक छाया फिर नेपाल में मंडरा रही है।
# डीप स्टेट का क्रांति मॉडल
नेपाल में हालिया हिंसा और बगावत अचानक नहीं हुई। एक DSP ने बिना आदेश के गोली चलवाई और पहले से तैयार भीड़ भड़क गई। क्या यह संयोग है? ठीक यही पैटर्न हमने 2024 में बांग्लादेश में देखा—छात्र आंदोलन, गोलीबारी, सरकार का पतन और विदेशी समर्थन वाली नई सत्ता। यह "कलर रिवोल्यूशन" का कॉपी-पेस्ट मॉडल है, जिसे डीप स्टेट अपने एजेंडे के लिए प्रयोग करता है।
# असली कारण या बनाया गया नैरेटिव?
नेपाल में बेरोजगारी कोई नई समस्या नहीं है। सदियों से नेपाली युवाओं को ब्रिटिश और भारतीय सेनाओं या खाड़ी देशों में पलायन करना पड़ता है। लेकिन आज टीवी चैनल और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया बेरोजगारी को “क्रांति” का कारण बताकर असली भूराजनीतिक हाथ को छुपा रहे हैं। टीवी का नैरेटिव वही है, जो डीप स्टेट का लिखा हुआ स्क्रिप्ट है।
# भारत के लिए खतरे की घंटी
नेपाल बांग्लादेश नहीं है। इसकी भौगोलिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक निकटता भारत से कहीं गहरी है। नेपाल की अराजकता सीधे भारत की सीमाओं, जल संसाधनों और व्यापारिक मार्गों पर असर डालती है। और यही इस पूरी “नकली क्रांति” का अंतिम लक्ष्य है—भारत को घेरना, अस्थिर करना और उसके भीतर अविश्वास का बीज बोना।
यह मान लेना भोलेपन होगा कि नेपाल की सड़कों पर युवाओं का गुस्सा सिर्फ सोशल मीडिया बैन या बेरोजगारी की वजह से है। यह गुस्सा एक बड़े भूराजनीतिक खेल की प्यादेबाज़ी है, जिसका असली निशाना भारत है।
कटु सत्य यही है कि नेपाल की आग केवल नेपाल तक सीमित नहीं है, इसका धुआँ भारत के आँगन तक पहुँचाने की तैयारी की जा रही है। सवाल यह है कि भारत कब तक इसे सिर्फ पड़ोसी की समस्या मानकर नजरअंदाज करेगा?