देश की लोकतांत्रिक सेहत का असली पैमाना उसकी प्रेस की स्वतंत्रता होती है।
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
देश की लोकतांत्रिक सेहत का असली पैमाना उसकी प्रेस की स्वतंत्रता होती है।
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2025 में भारत का 151वाँ स्थान हमारे लोकतंत्र की गिरती हुई गुणवत्ता का सबसे स्पष्ट, सबसे निर्विवाद संकेत है।
सूची में हमारे पीछे वे देश खड़े हैं जिनकी राजनीतिक व्यवस्था पर अक्सर सवाल उठते हैं—और भारत जैसे 140 करोड़ की आबादी वाले, दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का इस सूची में नीचे खिसकना केवल एक सांख्यिकीय गिरावट नहीं, बल्कि चेतावनी है।
## 151वीं रैंक का अर्थ क्या है?
* इसका मतलब है कि पत्रकारों की सुरक्षा लगातार कमजोर हुई है।
* मीडिया पर कानूनी और आर्थिक दबाव बढ़ा है।
* सरकारी विज्ञापन, ट्रोल आर्मी और केस-कार्रवाई के माध्यम से स्वतंत्र मीडिया को नियंत्रित करने के प्रयास आम हो चुके हैं।
* स्व-नियंत्रित, यानी self-censored पत्रकारिता एक सामान्य बात बन गई है।
* और सबसे चिंताजनक— आलोचनात्मक पत्रकारिता को “राष्ट्र-विरोधी” या “दुश्मन का एजेंडा” बताकर दबाया जा रहा है।
## जब पत्रकारिता कमजोर होती है, लोकतंत्र बीमार पड़ता है
एक स्वस्थ लोकतंत्र तीन स्तम्भों से नहीं, चार स्तंभों से बना होता है— विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और स्वतंत्र मीडिया। जब मीडिया कमजोर या नियंत्रित हो जाता है—
* सत्ता का जवाबदेही तंत्र टूट जाता है।
* आम नागरिक के पास विश्वसनीय जानकारी नहीं बचती।
* झूठ और प्रचार नीति बन जाते हैं।
* सच्चाई बताने का काम प्रेस की जगह YouTubers और “फैक्टरी-निर्मित नैरेटिव” करने लगते हैं।
यह वही स्थिति है जिसे लोकतंत्र का slow poisoning कहा जाता है।
## भारत की गिरावट कोई आकस्मिक घटना नहीं है
पिछले छह वर्षों में भारत लगातार नीचे आया है—
132 → 138 → 142 → 150 → 151।
यह रुझान बताता है कि यह गिरावट एक-दो घटनाओं की वजह से नहीं, बल्कि एक सिस्टेमिक बनावट का हिस्सा है—
* स्वतंत्र मीडिया संस्थानों का बंद होना
* बड़े मीडिया घरानों का कॉरपोरेट-राजनेता गठजोड़ में बदल जाना
* फर्जी केस, आईटी-छापे, UAPA, राजद्रोह जैसे कानूनों का इस्तेमाल
* इंटरनेट शटडाउन की बढ़ती घटनाएँ
* सरकारी प्रेस कॉन्फ़्रेंसों का लगभग न होना
* PMO का एकतरफा संचार मॉडल
* टीवी डिबेट्स का शोर बनाम रिपोर्टिंग का पतन
ये सब मिलकर लोकतंत्र की सूचना-रीढ़ को कमजोर करते हैं।
## यह केवल रैंक की बात नहीं है—यह जनता के अधिकार की बात है
प्रेस की स्वतंत्रता कोई पत्रकार का विशेषाधिकार नहीं है।
यह नागरिक का मौलिक अधिकार है कि उसे तथ्य मिलें, सवाल उठें, सत्ता पर निगरानी हो।
151वें स्थान का अर्थ है कि सत्ता और मीडिया के बीच रिश्ता असंतुलित हो चुका है। जब सवाल पूछने वाला कमजोर हो जाए, तब जवाब देने वाला कभी जवाबदेह नहीं रहता।
## प्रेस की आज़ादी बचाना लोकतंत्र को बचाना है
आज भारत को यह स्वीकारने की आवश्यकता है कि रैंकिंग बदलना सिर्फ़ एक नंबर सुधारने का काम नहीं— यह शक्तिशाली लोकतंत्र की मूल आत्मा को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
जब तक—
* पत्रकार सुरक्षित नहीं होंगे,
* मीडिया स्वायत्त नहीं होगा,
* सत्ताधारी प्रेस के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे,
* और जनता प्रचार के बजाय सूचना की मांग नहीं करेगी,
तब तक लोकतांत्रिक सेहत बेहतर नहीं होगी।
151वीं रैंक सिर्फ़ सच्चाई नहीं—एक चेतावनी है और सवाल यह है: हम इस चेतावनी को सुनेंगे, या इसे भी “नैरेटिव” कहकर अनदेखा कर देंगे?
