सूचना का विखंडन: पत्रकारिता की गिरती स्वतंत्रता और विश्वास की बहाली का मार्ग

 लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला 


सूचना का विखंडन: पत्रकारिता की गिरती स्वतंत्रता और विश्वास की बहाली का मार्ग

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ—मीडिया और पत्रकारिता—आज अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से गुज़र रहा है। एक ओर आर्थिक दबाव है, तो दूसरी ओर राजनीतिक नियंत्रण। इन मूलभूत परेशानियों और बाधक कारकों ने जनहित में कार्य करने की मीडिया की क्षमता को गंभीर रूप से पंगु बना दिया है, जिससे नागरिकों का सूचना पर आधारित निर्णय लेने का अधिकार प्रभावित हो रहा है।

I. पत्रकारिता की मूलभूत संरचनागत परेशानियाँ

वर्तमान मीडिया की समस्या केवल बाहरी हस्तक्षेप तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उसके आंतरिक और आर्थिक ढांचे में भी निहित है:

आर्थिक गुलामी और टीआरपी की दौड़: मीडिया हाउस की आय का बड़ा हिस्सा (अक्सर 60% से अधिक) सरकारी और कॉर्पोरेट विज्ञापनों पर निर्भर करता है। यह निर्भरता मीडिया को एक 'सेल्फ-सेंसरशिप' की ओर धकेलती है, जहाँ विज्ञापनदाताओं या सत्ताधारी समूहों के हितों के विरुद्ध रिपोर्टिंग करना असंभव हो जाता है। साथ ही, उच्च टीआरपी (TRP) की अंधी दौड़ ने गहन समाचारों को हटाकर सनसनीखेज, सतही और भावनात्मक ध्रुवीकरण वाली सामग्री को प्राथमिकता दी है।

कॉर्पोरेट स्वामित्व और हितों का टकराव: कई बड़े मीडिया समूह अब गैर-मीडिया व्यापारिक घरानों के स्वामित्व में हैं। इन मालिकों के व्यापक व्यापारिक हित होते हैं, जिसके कारण मीडिया इकाई का उपयोग अक्सर प्रबंधन के व्यापारिक एजेंडे को बढ़ावा देने या राजनीतिक संरक्षण प्राप्त करने के लिए किया जाता है, जिससे संपादकीय स्वतंत्रता (Editorial Autonomy) पूरी तरह समाप्त हो जाती है।

 खोजी पत्रकारिता का ह्रास: उच्च लागत, समय और कानूनी जोखिम के कारण गहन खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) लगभग समाप्त हो गई है। इसका स्थान "चैट शो" और पक्षपाती स्टूडियो डिबेट ने ले लिया है, जो तथ्य जुटाने के बजाय राय (Opinion) थोपने पर केंद्रित होते हैं।

II. स्वतंत्रता के बाधक और नियंत्रणकारी कारक

मीडिया को स्वतंत्र रूप से कार्य करने से रोकने वाले बाहरी कारक अत्यधिक दमनकारी हैं:

 सरकारी नियंत्रण और कानूनी हथकंडे: सत्ता पक्ष द्वारा दमनकारी कानूनों जैसे राजद्रोह और मानहानि (Defamation) का दुरुपयोग आलोचनात्मक पत्रकारों को डराने और चुप कराने के लिए किया जाता है। सरकारी विज्ञापनों को रोकने की धमकी एक आर्थिक हथियार के रूप में इस्तेमाल होती है। सूचना तक पहुँच (Access to Information) को नियंत्रित करना और पारदर्शिता को कम करना इसकी स्वतंत्रता को बाधित करता है।

 राजनीतिक-कॉर्पोरेट सांठगांठ: यह गठजोड़ सुनिश्चित करता है कि बड़े घोटालों या नीतियों की कमियों को उजागर न किया जाए। 'पेड न्यूज' (Paid News) की प्रथा ने तो पत्रकारिता की नैतिकता को ही खोखला कर दिया है, जहाँ पैसा लेकर सामग्री को समाचार के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

 पत्रकारों पर बढ़ता शारीरिक और साइबर खतरा: सत्ता की आलोचना करने वाले पत्रकारों को अक्सर शारीरिक हमलों, कानूनी उत्पीड़न (SLAPP Suits) और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर संगठित ट्रोलिंग (Organized Cyber-Harassment) का सामना करना पड़ता है। यह जान का खतरा पत्रकारों को आत्म-सेंसरशिप के लिए मजबूर करता है।

III. संकट का समाधान: विश्वास की बहाली का मार्ग

चौथे स्तम्भ की स्वतंत्रता और विश्वसनीयता को बहाल करने के लिए संरचनात्मक, कानूनी और सामाजिक स्तर पर तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है:

1. वित्तीय स्वतंत्रता और जवाबदेही (Financial Independence & Accountability)

रीडर-सपोर्टेड मॉडल: मीडिया हाउस को धीरे-धीरे विज्ञापनों पर निर्भरता कम करके सदस्यता (Subscription) या पाठक-समर्थित मॉडल (Reader-Supported Model) की ओर बढ़ना चाहिए। इससे जनता के प्रति उनकी जवाबदेही बढ़ेगी, न कि कॉर्पोरेट हितों के प्रति।

 सार्वजनिक अनुदान प्रणाली: स्वीडन जैसे देशों की तर्ज़ पर, राजनीतिक रूप से तटस्थ सार्वजनिक अनुदान (Public Grants) की स्थापना की जा सकती है, जो विशेष रूप से खोजी और जनहित पत्रकारिता का समर्थन करे।

 मालिकों के हितों का प्रकटीकरण: मीडिया स्वामित्व और उसके गैर-मीडिया व्यापारिक हितों का सार्वजनिक प्रकटीकरण (Public Disclosure) अनिवार्य किया जाना चाहिए।

2. कानूनी और विनियामक सुधार (Legal and Regulatory Reforms)

कानूनों का निरसन और संरक्षण: राजद्रोह जैसे औपनिवेशिक कानूनों का दुरुपयोग बंद होना चाहिए या उन्हें रद्द कर दिया जाना चाहिए। व्हिसलब्लोअर और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए मजबूत कानूनी ढांचा प्रदान किया जाना चाहिए।

 सशक्त प्रेस परिषद: भारतीय प्रेस परिषद जैसे संस्थानों को अधिक दंडात्मक शक्तियाँ (Punitive Powers) दी जानी चाहिए ताकि वे 'पेड न्यूज' और गैर-जिम्मेदाराना पत्रकारिता के खिलाफ कठोर कार्रवाई कर सकें।

3. पेशेवर मानक और नैतिक प्रतिबद्धता (Professional Standards & Ethics)

 प्रशिक्षण और संसाधन: पत्रकारों के लिए तथ्य-जाँच (Fact-Checking), डेटा पत्रकारिता और नैतिक आचार संहिता (Ethical Code of Conduct) पर सतत प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए।

 आंतरिक निगरानी (Internal Oversight): प्रत्येक मीडिया संगठन को एक स्वतंत्र आंतरिक लोकपाल या संपादकीय समिति स्थापित करनी चाहिए जो दर्शकों की शिकायतों का निपटान करे और संपादकीय स्वतंत्रता सुनिश्चित करे।

4. जनता की भूमिका (The Role of the Public)

 मीडिया साक्षरता: नागरिकों को मीडिया साक्षरता (Media Literacy) के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है ताकि वे फर्जी खबरों और पक्षपाती सामग्री के बीच अंतर कर सकें।

 गुणवत्ता की मांग: जब तक दर्शक गुणवत्तापूर्ण और निष्पक्ष पत्रकारिता का समर्थन नहीं करेंगे, टीआरपी और क्लिक-बेट का चक्रव्यूह नहीं टूटेगा। अच्छी पत्रकारिता को पढ़ना, देखना और उसका समर्थन करना हर नागरिक का लोकतांत्रिक कर्तव्य है।

मीडिया का संकट सिर्फ पत्रकारों का संकट नहीं, बल्कि लोकतंत्र का संकट है। इसकी स्वतंत्रता केवल तभी बहाल हो सकती है जब पत्रकार, मालिक, सरकार और नागरिक, सभी मिलकर यह सुनिश्चित करें कि सत्य और जनहित ही समाचार कक्षों के एकमात्र मार्गदर्शक सिद्धांत हों।