साइबर अपराध का अनियंत्रित जाल—विकास का अँधेरा पक्ष
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
साइबर अपराध का अनियंत्रित जाल—विकास का अँधेरा पक्ष
मानव सभ्यता के इतिहास में हर बड़ी प्रगति अपने साथ एक नया ख़तरा लेकर आई है। यदि औद्योगिक क्रांति ने प्रदूषण को जन्म दिया, तो इक्कीसवीं सदी की डिजिटल क्रांति ने एक ऐसे अदृश्य शत्रु को जन्म दिया है, जिसे हम साइबर अपराध कहते हैं। कंप्यूटर और इंटरनेट तकनीक के सहर्ष स्वीकार ने जहां 'एक क्लिक पर दुनिया' को हमारी मुट्ठी में कर दिया, वहीं दूसरी ओर, इसने आपराधिक तत्वों के लिए एक अनियंत्रित मकड़जाल भी तैयार कर दिया है, जिसकी भयावहता अब राष्ट्रीय सुरक्षा और आम नागरिक की आर्थिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा संकट बन चुकी है।
# भयावहता के नए आंकड़े
भारत में साइबर अपराध की अप्रत्याशित वृद्धि की पुष्टि करते हैं, जो हमारी साइबर सुरक्षा प्रणालियों में भारी कमजोरी को उजागर करती है:
शिकायतों का विस्फोट: राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल की 1930 हेल्पलाइन पर अप्रैल 2023 में ऑनलाइन धोखाधड़ी की 7 लाख शिकायतें दर्ज हुईं। इसका अर्थ है कि औसतन एक दिन में 23,000 और लगभग प्रति घंटे 1,000 अपराध हो रहे हैं।
वित्तीय नुकसान की दर: जनवरी 2020 से जून 2023 के बीच दर्ज साइबर अपराधों में 77.4% ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी से संबंधित थे।
धोखाधड़ी में वृद्धि: भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, क्रेडिट और डेबिट कार्ड धोखाधड़ी में शामिल राशि 2020-21 में ₹119 करोड़ से बढ़कर 2022-23 में ₹276 करोड़ हो गई—जो कि दो साल में दुगुने से अधिक की वृद्धि है।
क्षेत्रीय विस्तार: साइबर गिरोह अब केवल जामताड़ा तक सीमित नहीं हैं; वे ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार, कर्नाटक, असम, गुजरात और यहाँ तक कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह सहित हर राज्य में सक्रिय हैं।
डिजिटल पेमेंट पर हमला: यूपीआई (UPI) धोखाधड़ी का प्रतिशत सबसे अधिक है, जो कुल साइबर अपराधों में 47.3% का योगदान देता है।
ये आंकड़े दर्शाते हैं कि साइबर सुरक्षा अब केवल तकनीकी चुनौती नहीं, बल्कि कानून-व्यवस्था, आर्थिक स्थिरता और राष्ट्रीय विश्वास का मामला बन चुकी है।
# साइबर अपराध का बदलता चेहरा: जटिलता और विस्तार
अब साइबर अपराध केवल साधारण 'कार्ड हैकिंग' तक सीमित नहीं है। प्रौद्योगिकी में नवाचारों के साथ, अपराध भी जटिल हो गए हैं:
नया अपराध जगत: साइबर तस्करी, रैंसमवेयर, क्रिप्टोकरेंसी धोखाधड़ी, साइबर आतंकवाद और डीपफेक जैसे नए अपराधों ने भी अपनी जगह बना ली है। डीपफेक का 0.1% का शुरुआती आंकड़ा भविष्य में सूचना और पहचान की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा करता है।
फर्जी कनेक्टिविटी: अप्रैल और अगस्त 2023 के बीच 52 लाख मोबाइल कनेक्शंस को नकली कागजात के उपयोग के कारण रद्द किया जाना बताता है कि साइबर अपराधी फर्जी पहचान और कनेक्शन का जाल बिछाकर राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरे में डाल रहे हैं।
यह वह स्थिति है, जिसे सरकार के बड़े अधिकारियों ने भी स्वीकार किया है कि देश अभी इन अपराधों से निपटने के लिए पूरी तरह से सक्षम नहीं है।
# तत्काल आवश्यकता: मजबूत साइबर सुरक्षा कवच
जब तक आम आदमी तथा व्यापारिक संस्थाओं में डिजिटल व्यवस्था पर विश्वास नहीं बनेगा, तब तक हम अपनी डिजिटल अर्थव्यवस्था की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाएंगे। इसके लिए निम्नलिखित कदम युद्धस्तर पर उठाने होंगे:
1. राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा कवच (National Cyber Security Shield): देश में एक मजबूत, एकीकृत और समय-समय पर उन्नत (Upgraded) साइबर सुरक्षा कवच का निर्माण अति आवश्यक है। यह कवच आम आदमी की निजी जानकारी और धन को सुरक्षित करने के लिए एक अभेद्य दीवार का काम करे।
2. जागरूकता ही बचाव: सरकार और मीडिया को मिलकर एक राष्ट्रीय जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। लोगों को यह सिखाना होगा कि वे फ़िशिंग, स्पूफ़िंग और सामाजिक इंजीनियरिंग जैसे हमलों को पहचानें और अवांछित लिंक या संदेशों पर अपनी निजी जानकारी साझा न करें।
3. कानूनी और न्यायिक क्षमता: साइबर अपराधों से जुड़े मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष साइबर अदालतों और साइबर फोरेंसिक विशेषज्ञों की क्षमता को बड़े पैमाने पर बढ़ाना होगा, ताकि अपराधियों को सजा मिले और न्याय हो।
4. राज्य-स्तरीय समन्वय: जामताड़ा जैसे अपराध केंद्रों से निपटने के लिए विभिन्न राज्यों की पुलिस और एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय और सूचना साझाकरण अनिवार्य है।
भारत को अपनी 'डिजिटल शक्ति' को 'डिजिटल सुरक्षा' से संतुलित करना होगा। अगर लाखों अपराध प्रति वर्ष हो रहे हैं, तो यह डिजिटल इंडिया के सपने पर एक गंभीर खतरा है। साइबर अपराध की इस चुनौती को राष्ट्रीय सुरक्षा के समकक्ष रखकर ही इस पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
