करवाचौथ /कर्क चतुर्थी, शास्त्रीय महत्व
शास्त्रीय महत्व
स्वयं को समाज और संस्कृति से ऊपर समझने वाले लोग कई बार करवाचौथ को मनगढंत और फिल्मी त्योहार कहते हैं।
ये बात सही है कि फिल्मी फूहड़पन ने व्रत के स्वरूप को पूरी तरह से बदल दिया है जिससे ये महत्वपूर्ण त्योहार बाजारवाद और दिखावे का शिकार हो गया है।
पर कर्क चतुर्थी का ये व्रत पौराणिक है जिसका वर्णन व्रतराज, वामनपुराण आदि में किया गया है, और ये ही एक मात्र ऐसा व्रत है जिसे केवल महिलाओं को ही करने का अधिकार भी कहा गया है शास्त्रों में।
व्यस्तता के चलते बहुत ज्यादा डिटेल में नही लिख पाया आज, पर कुछ संदर्भ है।
चतुर्थ्यां कार्तिके कृष्णे करकाख्यं व्रतं स्मृतम् ४३
स्त्रीणामेवाधिकारोऽत्र तद्विधानमुदीर्यते
पूजयेच्च गणाधीशं स्नाता स्त्रीसमलंकृता ४
तदग्रे पूर्णपक्वान्नं विन्यसेत्करकान्दश
समर्प्य देवदेवाय भक्त्या प्रयतमानसा ४५
देवो मे प्रीयतामेवमुच्चार्य्याथसमर्पयेत् सुवासिनीभ्यो विप्रेभ्यो यथाकामं च सादरम् ४६
ततश्चंद्रोदये रात्रौ दत्त्वार्यं विधिपूर्वकम्
भुञ्जीत मिष्टमन्नं च व्रतस्य परिपूर्तये ४७
यद्वा क्षीरेण करकं पूर्णं तोयेन वा मुने सपूगाक्षतरत्नाढ्यं द्विजाय प्रतिपादयेत् ४८
एतत्कृत्वा व्रतं नारी षोडशद्वादशाब्दकम्
उपायनं विधायाथ व्रतमेतद्विसर्जयेत् ४६
यावज्जीवं तु वा नार्या कार्यं सौभाग्यवांछ्या
व्रतेनानेन सदृशं स्त्रीणां सौभाग्यदायकम् ५०
सरगी आदि के विषय में कुछ नही कहना सही रहेगा, वैसे भी कुलपरंपरा से अलग चलने के लिए मैं कभी भी नही कहता, हालांकि इसके लिए कोई शास्त्रीय प्रमाण नही मिलता है।
पर समर्पण और भक्ति का ये त्योहार केवल मेहन्दी, साड़ी और श्रृंगार के दिखावे तक सीमित रह जाना, वास्तव में दुःखदायक है।
बांकी की कसर, बाहर खाना खाने की परंपरा ने पूरी करदी है, पूरे दिन निर्जल व्रत रख कर, पूजा पाठ करके, लोग बाहर होटलों का खाना खाते हैं जिसकी शुद्धता का कोई अता पता नहीं है।
परिस्थिति विशेष में ऐसा करना अनुचित नही, पर लगभग 20 घंटे के निर्जल उपवास के बाद, घर का बने शुद्ध और सुपाच्य खाने को वरीयता दें।
शुक्रवार को मनाने वाले करवाचौथ व्रत की हार्दिक शुभकामनाएं।