इंसानी उंगलियों की लकीरें: सृष्टि का अनोखा रहस्य

 लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला 


इंसानी उंगलियों की लकीरें: सृष्टि का अनोखा रहस्य

1. वैज्ञानिक दृष्टिकोण

गर्भ के चौथे महीने में भ्रूण की उंगलियों पर जो लकीरें उभरती हैं, उन्हें विज्ञान Dermatoglyphics कहता है। ये लकीरें केवल पहचान का साधन नहीं, बल्कि हमारे तंत्रिका तंत्र और दिमागी विकास का भी प्रतिबिंब हैं।

 भ्रूण जिस द्रव में तैर रहा होता है, उसकी गति, दबाव और आनुवंशिक संदेश इन लकीरों को आकार देते हैं।

यही कारण है कि दो जुड़वाँ बच्चों के भी निशान अलग-अलग होते हैं।

यहाँ सवाल उठता है कि यह विविधता सिर्फ़ भौतिक कारणों का परिणाम है या फिर इसके पीछे कोई अदृश्य सृजनहार है?

2. दार्शनिक दृष्टिकोण

दार्शनिक दृष्टि से इन लकीरों का संदेश यह है कि प्रत्येक मनुष्य अद्वितीय है।

कोई भी व्यक्ति दूसरे की हू-ब-हू नकल नहीं हो सकता।

 हर आत्मा अपने भीतर एक विशिष्ट धुन और पहचान लेकर आती है।

यह अद्वितीयता हमें यह बताती है कि सृष्टि कोई कारखाना नहीं, बल्कि एक जीवंत कला है।

अरस्तू ने कहा था—“Nature does nothing in vain” अर्थात् प्रकृति कभी भी निरर्थक कार्य नहीं करती। उंगलियों की लकीरों का यह भेद भी निरर्थक नहीं है, यह हर जीव के भीतर छिपी अनोखी कहानी है।

3. आध्यात्मिक दृष्टिकोण

धार्मिक ग्रंथों में “उँगलियों की पहचान” को गहरे सत्य से जोड़ा गया है।

कुरआन (सूरह क़ियामह 75:4): “हम उनकी उंगलियों की पोर-पोर को भी फिर से बना देंगे।”

 गीता (अध्याय 10): “मैं ही सब प्राणियों का मूल बीज हूँ।”

बाइबिल (Isaiah 49:16): “मैंने तेरा नाम अपनी हथेली पर अंकित कर लिया है।”

ये वचन इस बात के साक्ष्य हैं कि उंगलियों की लकीरें मात्र जैविक पैटर्न नहीं, बल्कि ईश्वर की उपस्थिति के हस्ताक्षर हैं।

4. रहस्यवादी दृष्टिकोण

सूफ़ी संत कहते हैं कि हर इंसान का अस्तित्व “किताब-ए-ख़ुदा” का एक पन्ना है। हमारी उंगलियों की लकीरें उस किताब के हाशिये पर लिखे गए अदृश्य शब्द हैं।

 रूमी लिखते हैं: “तुम्हारी हर रग, हर साँस में वही सृजनहार गाता है।”

 इसी तरह भारतीय संत कबीर ने कहा: “ज्यों नख में रेखा लिखी है, त्यों ही लिख्या नसीब।

यानी उंगलियों पर अंकित यह नक़्श जीवन के गहरे रहस्यों की ओर संकेत करता है।

5. दिव्य कला का प्रमाण

सोचिए, अरबों-खरबों इंसान जन्म ले चुके हैं और आगे भी लेंगे, लेकिन किसी की उंगलियों की छाप किसी और से मेल नहीं खाती। यह अनंत विविधता एक ही बात कहती है—

कोई है जो हर आत्मा को अलग पहचान देता है।

कोई है जो बार-बार नया डिज़ाइन रचता है।

कोई है जो अपनी कलाकारी से कहता है: “कोई है मुझ-सा आर्टिस्ट?”

और यही वह क्षण है जब मनुष्य विज्ञान से ऊपर उठकर श्रद्धा की भूमि पर खड़ा हो जाता है।

6. अन्ततः 

इंसानी उंगलियों की लकीरें सिर्फ़ हमारी पहचान नहीं, बल्कि सृष्टि की पहचान हैं।

 वे हमें बताते हैं कि हम मशीनों का परिणाम नहीं, बल्कि दिव्य चेतना की कृति हैं।

 जब यह लकीरें जलकर मिट भी जाती हैं और फिर से हू-ब-हू उभर आती हैं, तो यह सृष्टिकर्ता के हस्ताक्षर का शाश्वत प्रमाण है।

इसलिए कोई तो है—जो निज़ाम-ए-हस्ती चला रहा है। वही अल्लाह है, वही राम, वही ईश्वर, वही परमब्रह्म।