लद्दाख: लद्दाख की बर्फीली ज़मीन पर उठी आग

 

लद्दाख की आग : मोदी-शाह की नैतिक विफलता

लद्दाख की बर्फीली ज़मीन पर उठी आग केवल क्षेत्रीय असंतोष नहीं है, यह भारत की सत्ता के उच्चतम स्तर पर बैठे नेताओं की नैतिक विफलता का सबूत है। छात्रों द्वारा भाजपा कार्यालय को जलाना और पुलिस से हिंसक झड़पें उस गहरी निराशा का परिणाम हैं, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की वादाखिलाफी से उपजी है।

2019 में जब अनुच्छेद 370 हटाकर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, तब भरोसा दिया गया था कि यह बदलाव अस्थायी होगा और क्षेत्र को छठी अनुसूची व राज्य का दर्जा दिया जाएगा। परंतु चार साल बीतने के बावजूद न वादे पूरे हुए, न संवाद की ईमानदार कोशिश हुई। परिणाम यह हुआ कि एक शांतिपूर्ण और धार्मिक रूप से सहिष्णु क्षेत्र हिंसा की गिरफ्त में आ गया।

मणिपुर की ढाई साल लंबी त्रासदी हो या पुलवामा और पहलगाम जैसी सुरक्षा विफलताएँ—मोदी और शाह ने कभी ज़िम्मेदारी स्वीकार नहीं की। अब लद्दाख का विस्फोट भी उसी लंबी सूची में जुड़ गया है। सवाल यह है: क्या भारत के सबसे शक्तिशाली नेताओं को नैतिक जवाबदेही का कोई अहसास है?

लद्दाख की अशांति केवल लोकतंत्र का संकट नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौती भी है। यह वही क्षेत्र है जहाँ चीन लगातार दबाव बनाए रखता है। यदि स्थानीय लोग ही अपने भविष्य को असुरक्षित महसूस करने लगें, तो सीमाएँ केवल सैनिकों से नहीं बचाई जा सकतीं।

प्रधानमंत्री मोदी अक्सर वैश्विक मंचों पर भारत की लोकतांत्रिक परंपरा का बखान करते हैं। किंतु लद्दाख की वास्तविकता यह दिखाती है कि केंद्र सरकार अपने ही नागरिकों की आवाज़ सुनने को तैयार नहीं है। युवाओं का यह गुस्सा केवल वादाखिलाफी पर नहीं, बल्कि उपेक्षा और अहंकार की राजनीति पर भी है।

आज भारत को जिस नेतृत्व की ज़रूरत है, वह वह नहीं जो केवल सत्ता का नियंत्रण बनाए रखे, बल्कि वह जो जनता का भरोसा निभाए। लद्दाख ने चेतावनी दी है। यदि मोदी-शाह अब भी आँखें मूँदते हैं, तो यह संकट और गहरा होगा—राजनीतिक रूप से भी, और सुरक्षा के लिहाज़ से भी।

Crimediaries9 The Real crime stories on YouTube 

Plzzzz subscribe the channel for more videos