हर तीसरी मौत की वजह दिल ही क्यों?
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
हर तीसरी मौत की वजह दिल ही क्यों?
भारत की स्वास्थ्य रिपोर्ट हमें एक चौंकाने वाली और डराने वाली हक़ीक़त दिखाती है—अब देश में मौत का सबसे बड़ा कारण संक्रामक रोग नहीं, बल्कि हृदय रोग बन चुके हैं। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के अनुसार 2021–23 के बीच हुई कुल मौतों में लगभग 31% मौतें सीधे-सीधे दिल की बीमारियों से जुड़ी थीं। यानी देश में हर तीसरी मौत की जड़ दिल है। और यह सिर्फ दर्ज मामलों की बात है, जबकि हम सब जानते हैं कि हज़ारों केस कभी सरकारी रजिस्टर तक पहुँच ही नहीं पाते।
# जीवनशैली बनाम दिल की सेहत
लांसेट जर्नल और आईसीएमआर दोनों मानते हैं कि भारत में हृदय रोगों का बोझ दुनिया के औसत से कहीं ज़्यादा है। 30 साल की उम्र के बाद यह खतरा अचानक बढ़ जाता है। WHO की चेतावनी और भी गंभीर है—एशियाई युवाओं में हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा पश्चिमी देशों से कहीं अधिक है।
आज का शहरी जीवनशैली इस बीमारी का मुख्य कारक बन गया है—
लगातार तनाव और नींद की अनियमितता
तैलीय और जंक फूड का बढ़ता चलन
व्यायाम और शारीरिक श्रम की भारी कमी
स्क्रीन पर लंबे समय तक चिपके रहना
धूम्रपान और शराब जैसी आदतें
डायबिटीज़ और ब्लड प्रेशर को हल्के में लेना
# डराने वाली घटनाएँ
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 10 वर्षीय बच्चा खेलते-खेलते गिरा और उसका दिल थम गया।
गुजरात में शादी समारोह में 18 साल का युवक नाचते हुए गिरा और मौत हो गई।
दिल्ली में 35 वर्षीय आईटी प्रोफेशनल मीटिंग के दौरान हार्ट अटैक से चल बसा।
ये उदाहरण साबित करते हैं कि हृदय रोग अब केवल बुज़ुर्गों की बीमारी नहीं रहे। यह बच्चों, युवाओं और पेशेवरों तक फैल चुकी महामारी है।
# सरकारी प्रयास और उनकी सीमाएँ
भारत सरकार ने NPCDCS (राष्ट्रीय हृदय रोग नियंत्रण कार्यक्रम) के तहत शुरुआती जाँच और जागरूकता अभियान शुरू किए हैं। लेकिन प्रश्न है कि क्या केवल सरकारी कार्यक्रम से यह समस्या थमेगी? नहीं। जब तक परिवार और समाज स्तर पर जीवनशैली सुधार की गंभीर पहल नहीं होगी, तब तक यह बीमारी भारत की सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बनी रहेगी।
# ज़रूरी हस्तक्षेप
1. व्यक्तिगत स्तर पर — संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, धूम्रपान और शराब से दूरी, पर्याप्त नींद और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान।
2. सामाजिक स्तर पर — कार्यस्थलों पर हेल्थ ब्रेक्स, स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा, खेल और योग को दिनचर्या का हिस्सा बनाना।
3. नीति स्तर पर — प्रदूषण नियंत्रण, फास्ट फूड पर नियमन, और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में नियमित कार्डियक स्क्रीनिंग की सुविधा।
भारत एक युवा देश है। लेकिन यदि हर तीसरी मौत दिल की बीमारी से होने लगे तो यह “डेमोग्राफिक डिविडेंड” धीरे-धीरे “हेल्थ डिज़ास्टर” में बदल जाएगा। हमें यह समझना होगा कि दिल की बीमारी सिर्फ अस्पताल या दवा का मुद्दा नहीं, बल्कि जीवनशैली और समाज की सोच का सवाल है।
दिल बचाने के लिए सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि सही जीवन जीने की आदतें ही असली दवा हैं। यही समय है कि भारत दिल से सोचे—वरना दिल ही बार-बार धोखा देता रहेगा।