नई दिल्ली: गांधी मैदान से उठा “हाइड्रोजन बम” – लोकतंत्र की परीक्षा।

 लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला 

गांधी मैदान से उठा “हाइड्रोजन बम” – लोकतंत्र की परीक्षा

पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से राहुल गांधी ने जब यह कहा कि “पहले एटम बम चलाया था, अब हाइड्रोजन बम आने वाला है”, तो यह महज़ चुनावी जुमला नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद पर एक गंभीर विमर्श की शुरुआत थी। सवाल यह है कि यह हाइड्रोजन बम क्या है? और क्यों इससे सत्ता और चुनाव आयोग दोनों बेचैन नज़र आ रहे हैं?

1. वोट चोरी का नैरेटिव :

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जिस तरह मतदाता सूचियों में गड़बड़ी और डेटा मैनिपुलेशन का मामला उठाया, वही अब लोकसभा स्तर पर विस्तारित रूप में सामने आ सकता है। वाराणसी से लेकर हरियाणा और महाराष्ट्र तक कई चुनाव क्षेत्रों में यह आरोप उठे हैं कि वोटर लिस्ट में हेरफेर हुआ, वोट ट्रांसफर किए गए और परिणाम वास्तविक जनादेश से भिन्न बनाए गए। यदि राहुल गांधी अपनी डेटा एक्सपर्ट टीम के माध्यम से ठोस सबूतों के साथ यह मामला जनता के सामने रखते हैं, तो यह सचमुच राजनीतिक परिदृश्य में विस्फोटक साबित हो सकता है।

2. हरियाणा–महाराष्ट्र की गुत्थियाँ :

हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और कई स्वतंत्र विश्लेषकों ने चुनाव आयोग की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं। 90 में से लगभग 80 विधानसभा क्षेत्रों में घोषित वोटों और गिने गए वोटों में अंतर पाया जाना साधारण घटना नहीं कही जा सकती। महाराष्ट्र और गुजरात से भी इसी तरह की घटनाओं की रिपोर्ट सामने आती रही हैं। यदि ये आँकड़े सार्वजनिक स्तर पर विश्वसनीय रूप से प्रस्तुत होते हैं, तो चुनावी विश्वसनीयता की नींव हिल सकती है।

3. EVM और VVPAT पर सवाल :

अब तक कांग्रेस ने मतदाता सूची में गड़बड़ी का मुद्दा उठाया था, लेकिन राहुल गांधी के हाइड्रोजन बम का सबसे बड़ा धमाका संभवतः EVM और VVPAT से जुड़ा हो सकता है। चुनाव आयोग द्वारा मशीनों की पारदर्शिता पर लगातार सवाल उठते रहे हैं—मॉक पोल का खेल, 45 दिन बाद वीडियोग्राफी का कानून, VVPAT पर्चियों का सीमित मिलान, और लावारिस हालत में मिली मशीनें। यदि विपक्ष इन पर सबूतों के साथ सवाल उठाता है, तो यह न केवल तकनीकी बल्कि संवैधानिक संकट का कारण बन सकता है।

4. चुनाव आयोग की साख पर प्रश्न :

भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ चुनाव आयोग है। यदि यही संस्था निष्पक्षता पर कटघरे में खड़ी हो जाए, तो लोकतंत्र का आधार कमजोर हो जाएगा। यही कारण है कि राहुल गांधी का यह हाइड्रोजन बम महज़ राजनीति नहीं, बल्कि लोकतंत्र की पवित्रता और जनता के विश्वास का मुद्दा बन सकता है।

5. विमर्श और चुनौती :

यदि यह नैरेटिव स्थापित हो जाता है कि वर्तमान सत्ता “वोट चोरी” से टिकी हुई है, तो भारतीय राजनीति की दिशा ही बदल सकती है। लेकिन दूसरी ओर, यदि राहुल गांधी के पास ठोस प्रमाण न हुए और यह बयान महज़ चुनावी हथियार बनकर रह गया, तो यह कांग्रेस की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करेगा।

गांधी मैदान से उठा यह हाइड्रोजन बम भारतीय लोकतंत्र के लिए एक आगामी परीक्षा है। या तो यह वोटर अधिकार और चुनावी पारदर्शिता की बहस को नई ऊँचाई देगा, या फिर “नौ दिन चले अढ़ाई कोस” साबित होगा। लेकिन एक बात निश्चित है—लोकतंत्र में विश्वास तभी टिकेगा जब जनता को यह भरोसा हो कि उसका वोट सचमुच उसकी सत्ता बनाता है।