नवरात्रि अनुष्ठानों का वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक महत्व
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
नवरात्रि अनुष्ठानों का वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक महत्व
नवरात्रि भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख उत्सव है जिसमें देवी दुर्गा के विविध रूपों की उपासना की जाती है। घट/कलश स्थापना, जौ बोना, नारियल रखना, दीप प्रज्वलन और हवन जैसे अनुष्ठानों का आध्यात्मिक महत्व तो स्पष्ट है, परंतु इनका गहरा वैज्ञानिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक आधार भी है। यह शोध-निबंध नवरात्रि अनुष्ठानों के बहुआयामी अर्थ को उद्घाटित करता है और दर्शाता है कि ये परंपराएँ केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं हैं, बल्कि स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामाजिक चेतना से भी प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई हैं।
भारत की परंपराएँ सदैव से ही “धर्म, विज्ञान और प्रकृति” के संतुलन पर आधारित रही हैं। नवरात्रि, जो वर्ष में दो बार (चैत्र और शारदीय) मनाई जाती है, शक्ति की उपासना का उत्सव है। इसमें किए जाने वाले अनुष्ठान सतही दृष्टि से केवल धार्मिक प्रतीत होते हैं, परंतु उनके पीछे वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक तर्क छिपे हुए हैं। इस अध्ययन का उद्देश्य नवरात्रि के प्रमुख अनुष्ठानों का बहुआयामी विश्लेषण करना है।
# विवेचना
1. घट / कलश स्थापना
आध्यात्मिक : ब्रह्मांड और जीवन-ऊर्जा का प्रतीक।
वैज्ञानिक : तांबे/पीतल का कलश जल को शुद्ध और आयनित करता है, जिससे वातावरण ऊर्जावान बनता है।
मनोवैज्ञानिक : कलश ध्यान का केंद्र बनकर मानसिक स्थिरता बढ़ाता है।
2. कलश में जल
आध्यात्मिक : जन्म और लय का प्रतीक (ज + ल = जल)।
वैज्ञानिक : जल में तरंग-स्मृति (water memory) होती है, जो आसपास की ऊर्जा को प्रभावित करती है।
मनोवैज्ञानिक : जीवन की चक्रीयता का स्मरण कराता है, जिससे धैर्य और स्वीकृति बढ़ती है।
3. नारियल रखना और फोड़ना
आध्यात्मिक : जीव, बुद्धि और अहंकार का प्रतीक।
वैज्ञानिक : नारियल में पोषक तत्व और औषधीय गुण हैं, इसे जीव बलि के विकल्प रूप में स्वीकारा गया।
मनोवैज्ञानिक : नारियल फोड़ना “अहंकार त्याग” और भावनात्मक शुद्धि का अनुभव कराता है।
4. जौ बोना
आध्यात्मिक : प्रथम बीज, जीवन और सृजन का प्रतीक।
वैज्ञानिक : अंकुरण से वातावरण में ऑक्सीजन की वृद्धि होती है।
मनोवैज्ञानिक : अंकुरित बीज को प्रतिदिन बढ़ते देखना आशा और नवीकरण की भावना जगाता है।
5. दीप प्रज्वलन
आध्यात्मिक : आत्मा और ज्ञान का प्रतीक।
वैज्ञानिक : घी/तेल के दीपक की लौ वायु में शुद्धिकरण करती है।
मनोवैज्ञानिक : लौ को देखने से ध्यान केंद्रित होता है, तनाव घटता है।
6. हवन
आध्यात्मिक : वासनाओं व नकारात्मक ऊर्जा का दहन।
वैज्ञानिक : गुग्गुल, कपूर, नीम आदि द्रव्य धूम्र से वातावरण जीवाणुरहित होता है।
मनोवैज्ञानिक : सामूहिक हवन सामाजिक एकता और मानसिक सुरक्षा प्रदान करता है।
नवरात्रि के अनुष्ठान भारतीय संस्कृति की उस गहरी वैज्ञानिकता और आध्यात्मिकता को प्रकट करते हैं जो मानव जीवन को समग्र दृष्टि से समझती है। ये अनुष्ठान केवल देवी की आराधना का माध्यम नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, पर्यावरण, मनोबल और सामाजिक एकता को बनाए रखने का साधन भी हैं। इस प्रकार नवरात्रि भारत की जीवंत परंपरा है जो आज भी प्रासंगिक है और भविष्य में भी मानवता को संतुलन और सामंजस्य का मार्ग दिखाती रहेगी।