जसवंतनगर/इटावा: मौत का क्लीनिक या इलाज का घर?

 चीफ एडिटर: एम.एस वर्मा, 6397329270



मौत का क्लीनिक या इलाज का घर?

जसवंतनगर के शिव गौर क्लीनिक पर उठे सवाल

जसवंतनगर/इटावा।

छोटे कस्बों के क्लीनिक अक्सर आम आदमी की पहली उम्मीद होते हैं। लेकिन जसवंतनगर का शिव गौर क्लीनिक अब लोगों के लिए डर का नाम बन चुका है। तीन सप्ताह पहले 10 वर्षीय मासूम दिव्यांश की जान जाने के बाद लोग सदमे से उभरे भी नहीं थे कि उसी क्लीनिक में एक और महिला की मौत हो गई।

फ़ाइल फोटो मृतक
दो-दो मौतों ने न सिर्फ क्लीनिक पर बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

मासूम दिव्यांश की दर्दनाक मौत

पिछले महीने की बात है। पेट दर्द से जूझ रहे 10 साल के दिव्यांश को परिजन इलाज के लिए शिव गौर क्लीनिक लेकर आए। एक घंटे तक चले इलाज के बाद अचानक उसकी मौत हो गई। परिजनों का आरोप था कि गलत दवा और लापरवाही से मासूम की जिंदगी खत्म हुई। दिव्यांश की मां अपने मृत बेटे को गोद में लेकर मदद की गुहार लगाती रही, लेकिन सिस्टम ने कोई सुनवाई नहीं की।

महिला की संदिग्ध मौत

नवीनतम घटना ने एक बार फिर पुराना जख्म हरा कर दिया। रविवार को मामूली चोट के इलाज के लिए एक महिला को क्लीनिक में लाया गया।
परिजनों ने डॉक्टर और स्टाफ से इंजेक्शन न लगाने की गुज़ारिश की, लेकिन उनकी एक न सुनी गई। इंजेक्शन लगते ही महिला की हालत बिगड़ी और 10 मिनट के भीतर उसने दम तोड़ दिया। गम और गुस्से से भरे परिजनों का आरोप है कि यह "इलाज" नहीं बल्कि "खुली हत्या" है।

जनता का गुस्सा और सवाल

शिव गौड क्लींनिक का विवादों से पुराना नाता है. दिनांक 10.9 2025 को कैस्त गाँब के विकास चौहान पर इसके पालतू दलित नौकर ने जान लेवा हमला बोल दिया था.
उस लड़के को ये डाक्टर दलित होने की बजह से रखे हुये है जो sc st act लगाने में मदद करे और लोग इस एक्ट के डर से डाक्टर से सबाल जबाब न करें.

नामी गिरामी पत्रकार से उलझा

डाक्टर का पाला पोसा ये दलित लड़का दो बार पत्रकारों से भी उलझ चुका है. बाद में इसकी थाने में कुटाई भी हो चुकी है.

लगातार हो रही इन मौतों से कस्बे के लोगों में भारी आक्रोश है। लोग कह रहे हैं कि "अगर यही इलाज है तो बेहतर है कि हम इलाज न कराएँ।" स्थानीय नागरिकों का कहना है कि क्लीनिक पर न तो पर्याप्त सुविधाएँ हैं, न ही प्रशिक्षित स्टाफ। बावजूद इसके यह वर्षों से धड़ल्ले से चल रहा है।

    बाइट मृतक की भाभी

प्रशासन की चुप्पी

सबसे बड़ा सवाल प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की भूमिका पर उठ रहा है। क्या यह क्लीनिक पंजीकृत है? क्या डॉक्टर के पास आवश्यक योग्यता है? दो-दो मौतों के बाद भी कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं हुई? लोग पूछ रहे हैं कि क्या किसी और की जान जाने का इंतजार है?

न्याय की पुकार

   बाइट मृतक का भाई

महिला के परिजनों ने खुलकर मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने प्रशासन से सख्त कार्रवाई और न्याय की मांग की है। दिव्यांश के परिवार का दर्द भी आज तक जस का तस है। दोनों ही परिवार अब सवाल कर रहे हैं कि अगर इंसाफ नहीं मिला, तो क्या यह मौतें सिर्फ "एक खबर" बनकर रह जाएँगी?