इटावा/जसवंतनगर: क्या हम आज़ादी की ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं?

चीफ एडिटर: एम.एस वर्मा, 6397329270

क्या हम आज़ादी की ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं?

आज जब हम आज़ादी के अमृतकाल का जश्न मना रहे हैं, तब यह जरूरी है कि हम सिर्फ़ नारे न लगाएं, बल्कि अपनी अंतरात्मा में झाँक कर देखें। क्या हमने वास्तव में आज़ादी के मायने समझे हैं? आज़ादी सिर्फ़ राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि यह एक गहरी सामाजिक और मानवीय जिम्मेदारी भी है। यह जश्न नहीं, बल्कि आत्म-चिंतन का मौका है।


 नफ़रत या इंसानियत: हमारा चुनाव

क्या हमने कभी सोचा है कि हमने अपने जीवन में किससे नफ़रत की? क्या यह नफ़रत किसी व्यक्ति विशेष से थी, या किसी समुदाय, धर्म या वर्ग से? आज़ादी हमें नफ़रत की दीवारों को गिराकर इंसानियत की बुनियाद पर एक समाज बनाने का मौका देती है। सवाल यह है कि क्या हमने दलितों, मुसलमानों और आदिवासियों के लिए सम्मान और न्याय की बात की है, या सिर्फ़ अपने समुदाय के लिए आवाज़ उठाई है? क्या हम उस समय चुप रहे, जब भीड़ ने किसी मासूम को घेरकर लिंचिंग की? हमारा मौन हमारी सहमति को दर्शाता है और हमें इस आज़ादी के असली मकसद से दूर ले जाता है।

 पड़ोस और सहभागिता: हमारी जिम्मेदारी

आज़ादी का मतलब अपने आसपास की ज़िंदगी को टेकओवर करना नहीं, बल्कि उनके साथ मिलकर चलना है। क्या हमने कभी अपने पड़ोसियों के काम आने के बारे में सोचा? क्या हमने सफाईकर्मी, लेबर, प्लंबर, मैकेनिक, और सब्जी बेचने वालों की ज़िंदगी में उनकी गरिमा और सम्मान के साथ दखल दिया? या हमने सिर्फ़ उन्हें अपनी ज़रूरतों को पूरा करने का साधन माना? जब हम इन लोगों को सम्मान देते हैं और उनके संघर्षों में साथ खड़े होते हैं, तब हम एक सच्चे और जिम्मेदार नागरिक बनते हैं।

 सपनों और संघर्षों में साथ

आज़ादी का मतलब केवल पुरुषों की आज़ादी नहीं है, बल्कि यह हर स्त्री के सपनों, सहभागिता और संघर्षों की भी आज़ादी है। हमने उनके सपनों को कितना समझा है? क्या हम उनके संघर्ष में उनके साथ खड़े रहे हैं? लैंगिक न्याय और समानता के बिना कोई भी समाज पूरी तरह से आज़ाद नहीं हो सकता। इसी तरह, जब किसान अपने हकों के लिए सड़कों पर उतरे, तो हमने उन्हें किस भाषा में याद किया? क्या हम उनके मुद्दों को समझने की कोशिश की, या उन्हें सिर्फ़ राजनीतिक चाल का हिस्सा मान लिया?

आज़ादी एक जिम्मेदारी है

आज़ादी एक उत्सव से कहीं ज़्यादा एक जिम्मेदारी है। यह जिम्मेदारी है एक ऐसे भारत के निर्माण की, जहाँ नफ़रत की कोई जगह न हो, जहाँ हर व्यक्ति को उसकी गरिमा के साथ सम्मान मिले, और जहाँ न्याय और समानता हर नागरिक का जन्मसिद्ध अधिकार हो। हमें अपने आसपास की ज़िंदगी को बेहतर बनाने में योगदान देना होगा, और हर कदम पर यह सुनिश्चित करना होगा कि हम आज़ादी के असली मूल्यों को निभा रहे हैं। यह वक्त है कि हम जश्न से परे, अपने कर्तव्यों पर ध्यान दें।