'वोट चोरी' का आरोप, संवैधानिक संकट और चुनाव आयोग की चुप्पी

 लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला 


'वोट चोरी' का आरोप, संवैधानिक संकट और चुनाव आयोग की चुप्पी

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा हरियाणा विधानसभा चुनावों में 'सेंट्रलाइज्ड साज़िश' के तहत लाखों वोटों की चोरी और चुनाव प्रक्रिया में धोखाधड़ी का सनसनीखेज आरोप लगाना, केवल एक राजनीतिक बयानबाजी नहीं है। यह आरोप राजनीतिक, विधिक और संवैधानिक—तीनों ही परिप्रेक्ष्यों में देश के लोकतंत्र के लिए एक गहरा संकट खड़ा करता है।

सत्ता पक्ष और चुनाव आयोग द्वारा इन आरोपों को मात्र 'आधारहीन' या 'नाकामी छिपाने का झूठ' बताकर खारिज कर देना, समस्या की गंभीरता को कम करने जैसा है।

1. संवैधानिक परिप्रेक्ष्य: लोकतंत्र का मूलभूत आधार

भारत का संविधान स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को लोकतंत्र की रीढ़ मानता है। अनुच्छेद 324 के तहत भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को चुनाव प्रक्रिया के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की व्यापक शक्ति दी गई है।

 मूलभूत प्रश्न: जब विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा ब्राज़ीलियाई मॉडल की तस्वीर का 22 बार इस्तेमाल होने, 1.24 लाख फ़र्ज़ी तस्वीरों वाले वोटर होने, और एक ही घर में 501 वोट दर्ज होने का दावा करता है, तो यह सीधे तौर पर संवैधानिक संस्था ECI की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

 ECI की जिम्मेदारी: ECI का यह कहकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना कि 'कांग्रेस को शिकायत करनी चाहिए थी', लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास को कम करता है। चुनाव आयोग की प्राथमिक जिम्मेदारी स्वप्रेरणा (Suo Motu) से ऐसी गंभीर विसंगतियों की पहचान कर उन्हें दूर करना है, न कि विपक्ष की शिकायत का इंतजार करना। वोटर सूची की शुद्धता (Purity of Electoral Roll) सुनिश्चित करना उसका संवैधानिक दायित्व है।

 'चोरी के मुख्यमंत्री' का दर्जा: यदि राहुल गांधी का दावा सही है कि चुनाव 'चुराया' गया था, तो यह न केवल जनादेश का उल्लंघन है, बल्कि संविधान के तहत स्थापित जन-प्रतिनिधित्व की पवित्रता का भी हनन है।

2. राजनीतिक परिप्रेक्ष्य: विश्वास का संकट

 सत्तापक्ष की प्रतिक्रिया: केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा आरोपों को 'फ़िजूल की बातें' और 'नाकामी छिपाने का खेल' बताना सत्ताधारी दल की एक सुविधाजनक प्रतिक्रिया हो सकती है, लेकिन यह आरोपों की गंभीरता को कम नहीं करता। चूंकि राहुल गांधी ने पोस्ट-बैलट और एग्जिट पोल में विरोधाभास, और मुख्यमंत्री सैनी के 'हमारे पास सारी व्यवस्थाएं हैं' वाले वीडियो को जोड़ा है, इसलिए सत्तापक्ष का नैतिक दायित्व है कि वह इन सबूतों की खुली और पारदर्शी जांच की मांग करे।

 विपक्ष की जिम्मेदारी: राहुल गांधी ने इन आरोपों को 'ऑपरेशन सरकार चोरी' का नाम देकर राष्ट्रीय मुद्दा बनाया है। अब उनकी राजनीतिक जिम्मेदारी है कि वह इन सबूतों को केवल प्रेस वार्ता तक सीमित न रखें। प्रशांत किशोर (PK) ने सही कहा है—विपक्ष को कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए, ECI को घेरना चाहिए, और उच्च न्यायालयों या सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करनी चाहिए ताकि इन सबूतों को विधिवत प्रमाणित कराया जा सके। केवल आरोपों की झड़ी लगाने से राजनीतिक लाभ मिल सकता है, लेकिन लोकतंत्र की शुचिता बहाल नहीं होगी।

3. विधिक परिप्रेक्ष्य: धोखाधड़ी और आपराधिक जांच

सांकेतिक सबूत: एक ब्राज़ीलियाई मॉडल की तस्वीर का वोटर सूची में होना, 'जीरो' पते वाले 19 लाख मतदाता, और एक ही घर में 501 वोट दर्ज होना, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत मतदाता सूची में धोखाधड़ी के प्रथम दृष्टया संकेत हैं।

 आवश्यक कार्रवाई: ECI को किसी भी राजनीतिक प्रतिक्रिया की परवाह किए बिना, इन आरोपों की गहन विधिक और फोरेंसिक जांच के आदेश देने चाहिए। यदि ये आरोप सिद्ध होते हैं, तो यह केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि आपराधिक साजिश का मामला है जिसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

राष्ट्रीय सुरक्षा का आयाम: फर्जी तस्वीरों, डुप्लीकेट नामों और फर्जी पतों का इतना बड़ा आंकड़ा न केवल चुनाव प्रक्रिया, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा है, खासकर जब 19 लाख मतदाताओं के पते दर्ज न हों।

राहुल गांधी के आरोपों को लेकर खड़ा हुआ यह विवाद सिर्फ़ एक राजनीतिक तकरार नहीं है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के संवैधानिक आधारों पर एक सीधा हमला है। चुनाव आयोग का यह कर्तव्य है कि वह सत्तापक्ष के दावों और विपक्ष के सबूतों के बीच संतुलन साधते हुए, डर और दबाव से मुक्त होकर इन सभी विसंगतियों की उच्चस्तरीय और समयबद्ध जांच कराए।

जब मतदाता के मन में यह संदेह घर कर जाए कि उसका वोट 'चोरी' हो सकता है, तब लोकतंत्र का 'संवैधानिक ढाँचा' हिल जाता है। लोकतंत्र की हत्या को रोकने के लिए, ECI को अपनी संवैधानिक भूमिका को मजबूत करना होगा और यह साबित करना होगा कि वह संवैधानिक पारदर्शिता के प्रति समर्पित है, न कि सत्ता के दबाव के प्रति मौन।