क्रिकेट बनाम राजनीति : भाजपा का नया प्रयोग
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
क्रिकेट बनाम राजनीति : भाजपा का नया प्रयोगभारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच की अनुमति देना महज़ खेल का निर्णय नहीं, बल्कि मोदी सरकार की एक सुनियोजित राजनीतिक चाल है। यह एक ऐसा प्रयोग है जिसके ज़रिए भाजपा यह परख रही है कि जनभावनाओं को किस हद तक मोड़ा, बहलाया और नियंत्रित किया जा सकता है।
सूचना क्रांति के इस दौर में नागरिक लगातार ‘ख़बरों’ से घिरे हुए हैं। हर क्षण मोबाइल स्क्रीन पर ताज़ा अपडेट चमकते रहते हैं। टीवी चैनल भी एक मिनट में सौ ख़बरें ठूंसकर यह आभास कराते हैं कि दर्शक अब पूरी तरह बाख़बर हैं। लेकिन वास्तव में आम आदमी के पास न तो तथ्य पड़ताल का समय बचता है और न विश्लेषण की गुंजाइश। यही वह शून्य है जिसे सत्ता सबसे ज़्यादा भुनाती है।
भाजपा जानती है कि भारत-पाक मैच सबसे बड़ा कमाई का ज़रिया है। साथ ही यह भी जानती है कि आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान से खेलने का फ़ैसला सवाल खड़े करेगा। इसके बावजूद उसने यह जोखिम उठाया, क्योंकि दोनों ही हालात में मुनाफ़ा उसी की झोली में है।
यदि सरकार मैच से इनकार कर देती तो उसकी राष्ट्रवादी छवि और भी प्रखर होती। ऑपरेशन सिन्दूर के दौरान डोनाल्ड ट्रम्प के कहने पर युद्धविराम की वजह से उसकी किरकिरी हुई थी, और यह मौका मोदी के लिए साख बचाने का था। लेकिन अरबों की कमाई का लालच इतना भारी पड़ा कि सरकार ने राष्ट्रवाद की आड़ में एक नई व्याख्या गढ़ दी— “द्विपक्षीय मैच नहीं खेलेंगे, लेकिन टूर्नामेंट की मजबूरी में उतरना पड़ेगा।”
यह वही रणनीति है जैसे मोदी ने प्रज्ञा ठाकुर को बापू के अपमान पर “दिल से माफ़ नहीं” करने की बात कही थी, लेकिन संसद में ठाकुर गोडसे की प्रशंसा करती रहीं और प्रधानमंत्री अपना “दिल” ही टटोलते रह गए।
आज न्यूज़ चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक वही नैरेटिव फैलाया जा रहा है— “भारत मजबूरी में पाकिस्तान से खेल रहा है, पर उसे माफ़ नहीं किया।” एंकर खिलाड़ी को धमकाते हैं कि “हिम्मत है तो बहिष्कार करो”, लेकिन उनमें इतनी हिम्मत नहीं कि गृह मंत्री से पूछें कि पहलगाम हमले के लिए जांच एजेंसियों की नाकामी क्यों हुई। और जय शाह, जो आईसीसी के चेयरमैन हैं, भारत-पाक मैच को टाल क्यों नहीं सके?
स्पष्ट है—मुद्दा केवल “खेल” नहीं, बल्कि खेल के बहाने राजनीति और पूँजी का गठजोड़ है। विज्ञापन, टिकट बिक्री, प्रसारण से प्रत्यक्ष अरबों की कमाई होती है और सट्टेबाज़ी से परोक्ष खरबों की। यह धंधा बिना राजनीतिक सरपरस्ती और प्रशासनिक सहयोग के संभव ही नहीं। तभी तो क्रिकेट संघों के शीर्ष पर हमेशा राजनेता या उनके रिश्तेदार बैठे नज़र आते हैं।
मोदी सरकार के दौर में अमित शाह के बेटे जय शाह का बीसीसीआई से आईसीसी तक पहुँचना कोई संयोग नहीं, बल्कि सत्ता और क्रिकेट की इस साझी पूंजीवादी संरचना का प्रमाण है।
भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच महज़ खेल नहीं, यह भाजपा की सत्ता-लोलुपता और पूंजी-प्रेरित राष्ट्रवाद का एक ताज़ा प्रयोग है। राष्ट्रवाद के नाम पर परिभाषाएँ गढ़ना और अवसरवादी तौर पर उन्हें तोड़-मरोड़कर पेश करना अब इस शासन की स्थायी रणनीति बन चुकी है।