मानव सभ्यता और इंजीनियरिंग का इतिहास : आस्था, विज्ञान और समाजहित
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
मानव सभ्यता और इंजीनियरिंग का इतिहास : आस्था, विज्ञान और समाजहित“सच्ची इंजीनियरिंग वही है, जो ईंट-पत्थर से आगे बढ़कर समाज और प्रकृति के बीच संतुलन का पुल बनाए।”
मानव सभ्यता की प्रगति का आधार केवल दर्शन और आस्था ही नहीं, बल्कि विज्ञान और शिल्पकला भी रहे हैं। साधारण जन के उपयोग हेतु बनाए गए भवन, पुल, कारखाने, मशीनें, नहरें और बाँध इस बात का प्रमाण हैं कि समाज को संगठित करने और जीवन को सुगम बनाने के लिए तकनीकी कौशल हमेशा से आवश्यक रहा है। यही कारण है कि इतिहास के विभिन्न कालखंडों में “इंजीनियरिंग” की परिभाषा अलग-अलग रूपों में सामने आती रही है।
👉 आस्था और इंजीनियरिंग : मिथक बनाम इतिहास
भारतीय समाज में “नल और नील” जैसे पात्रों को रामसेतु निर्माण से जोड़कर कभी-कभी प्रथम इंजीनियर के रूप में स्थापित करने की कोशिश की जाती है। यह आस्था का विषय है, जिसे मानने का अधिकार हर किसी को है। किंतु शैक्षणिक दृष्टि से इंजीनियरिंग का इतिहास तब प्रमाणिक बनता है जब किसी व्यक्ति के कार्यों का भौतिक और ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध हो।
👉 विश्व के प्रथम इंजीनियर : इम्होटेप और आर्किमिडीज़
इम्होटेप (2630–2611 ईसा पूर्व) : मिस्र के प्रख्यात बहु-प्रतिभाशाली विद्वान, जिन्हें विश्व का पहला इंजीनियर माना जाता है। उन्होंने फ़राओ जोसर के लिए सीढ़ीनुमा पिरामिड का निर्माण किया था, जो आज भी इंजीनियरिंग कौशल का अद्भुत उदाहरण है।
आर्किमिडीज़ (287–212 ईसा पूर्व) : यूनानी गणितज्ञ और आविष्कारक, जिन्हें भी कभी-कभी प्रथम इंजीनियर कहा जाता है। उन्होंने आर्किमिडीज़ का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिससे अनियमित आकार की वस्तुओं का आयतन ज्ञात किया जा सका। साथ ही, उन्होंने सिरैक्यूसिया नामक विशाल परिवहन जहाज का डिज़ाइन किया, जो उस समय की तकनीकी प्रगति का प्रतीक था।
यह तय करना कठिन है कि पहला इंजीनियर कौन था, किंतु यह स्पष्ट है कि चाहे इम्होटेप हों या आर्किमिडीज़ — दोनों ने ऐसे निर्माण किए, जिनका प्रत्यक्ष लाभ जनसाधारण को मिला। यही असली कसौटी है।
👉 भारत में इंजीनियरिंग का औपचारिक इतिहास
आधुनिक काल में भारत में इंजीनियरिंग को संगठित रूप से मान्यता मिलने का श्रेय सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को दिया जाता है।
उन्होंने मैसूर में कृष्णराज सागर बाँध का निर्माण करवाया, जो सिंचाई और पेयजल आपूर्ति के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ।
उनके प्रयासों से बेंगलुरु में सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना हुई।
देश में इंजीनियरिंग को व्यवस्थित शिक्षा और राष्ट्रनिर्माण के औजार के रूप में स्थापित करने में उनका योगदान अविस्मरणीय है।
भारत की प्रथम महिला इंजीनियर के रूप में आय्यालासोमयजुला ललिता का नाम सम्मानपूर्वक लिया जाता है। उन्होंने पुरुष-प्रधान क्षेत्र में अपनी दक्षता से यह सिद्ध किया कि इंजीनियरिंग केवल तकनीकी ज्ञान ही नहीं, बल्कि सामाजिक सशक्तिकरण का माध्यम भी है।
👉 इंजीनियरिंग डे और उसका महत्व
भारत में 1968 से इंजीनियरिंग डे मनाया जाने लगा, ताकि इस पेशे के महत्व और योगदान को सम्मान दिया जा सके। इस अवसर पर न केवल इंजीनियरों की तकनीकी उपलब्धियों को याद किया जाता है, बल्कि यह भी विचार किया जाता है कि आधुनिक इंजीनियरिंग किस प्रकार जीवन को आसान, सुरक्षित और पर्यावरण-संवेदनशील बना सकती है।
इंजीनियरिंग का सार केवल मशीनों और ढाँचों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज के लिए स्थायी समाधान खोजने और जीवन को सुगम बनाने का विज्ञान है। चाहे मिस्र के पिरामिड हों, यूनान के आविष्कार या भारत के बाँध — इन सबमें एक समान धारा यह है कि "मानव की तकनीकी प्रतिभा तभी सार्थक है जब वह जनहित में प्रयुक्त हो।"