शारदीय नवरात्र : संगीत साधना (अनहद नाद और शास्त्रीय संगीत)

 लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला 


🎶 शारदीय नवरात्र : संगीत साधना (अनहद नाद और शास्त्रीय संगीत) 🎶


1. नवरात्र और नादयोग का आध्यात्मिक सूत्र

 वेदों और उपनिषदों में नाद (ध्वनि) को ब्रह्म का स्वरूप माना गया है।

छांदोग्य उपनिषद कहता है—

  👉 “नादब्रह्मेति व्यजनात्” (नाद ही ब्रह्म है।)

 जब साधक जप, कीर्तन या संगीत के माध्यम से साधना करता है, तब उसका चित्त “अनहद नाद” (आंतरिक ध्वनि) की ओर ले जाया जाता है।

नवरात्र के नौ दिनों में देवी की पूजा, उपवास और गीत-संगीत इसी नादयोग का व्यावहारिक रूप हैं।

2. देवी और संगीत : शास्त्रीय सन्दर्भ

 देवी भागवत में देवी को “सर्वनादमयी” और “संगीतप्रिया” कहा गया है।

सरस्वती को वीणा वादिनी कहा गया, तो माँ दुर्गा को शंख, नगाड़ा और रणभेरी की ध्वनि का अधिष्ठान बताया गया।

तंत्र शास्त्र में शक्ति को “स्वरमयी” कहा गया है, अर्थात् सम्पूर्ण स्वर-सृष्टि देवी का ही रूप है।


3. शास्त्रीय संगीत और नवरात्र

भारतीय शास्त्रीय संगीत में राग-रागिनियों का संबंध देवी की उपासना और भक्ति से गहरा है।

(क) राग भैरवी

नवरात्रि की सुबह देवी की आराधना में प्रायः राग भैरवी का गान होता है।

 भैरवी को शिव की शक्ति और माँ दुर्गा का रूप माना जाता है। 

इसकी करुणा और शांति साधक के भीतर विनम्रता और भक्ति का संचार करती है।

(ख) राग दुर्गा

यह राग सीधे माँ दुर्गा के नाम पर है।

स्वरों का संयोजन (सा, रे, म, प, ध) साधक को वीर-रस और ऊर्जा से भर देता है। 

नवरात्रि के दौरान देवी की आरती और भजनों में राग दुर्गा का प्रयोग बहुत मिलता है।

(ग) राग मालकौंस

कहा जाता है कि तंत्री (वीणा) के स्पंदन से उत्पन्न यह राग देवी काली को प्रिय है।

यह राग साधक के भीतर “गंभीरता और रहस्य” को जगाता है।

मालकौंस का गान नवरात्र की मध्यरात्रि साधना में विशेष प्रभावी माना गया है।

(घ) गरबा और लोक संगीत

गुजरात का गरबा और डांडिया नृत्य केवल उत्सव नहीं, बल्कि देवी की परिक्रमा और नाद साधना है।

 गरबा गीतों में राग के सरल लोक रूप होते हैं—जो अनाहत चक्र (हृदय केंद्र) को सक्रिय करते हैं।

4. अनहद नाद और चक्र साधना

योगशास्त्र और नादयोग दोनों कहते हैं कि संगीत से चक्रों का जागरण होता है।

मूलाधार से आज्ञा चक्र तक स्वरों का आरोहण साधक को शुद्ध करता है।

अनाहत चक्र (हृदय केंद्र)—यही वह स्थान है जहाँ अनहद नाद की गूंज सुनाई देती है।

 नवरात्र में देवी की स्तुति और संगीत साधना से यही चक्र विशेष रूप से जाग्रत होता है।

5. संत और संगीत साधना

 संत कबीर:

  👉 “अनहद गूंजे नाद बिना बाजे।”

 गुरु नानक:

  👉 “अनहद शब्द बाजे घना, सहज समाधि भई।”

मीराबाई ने श्रीकृष्ण को गाते हुए अपने भीतर अनहद नाद का अनुभव किया।

इन संतों की भक्ति नवरात्र की संगीत साधना का व्यावहारिक उदाहरण है

6. व्यावहारिक साधना

 भजन-कीर्तन : सामूहिक गान से सामूहिक चेतना जागृत होती है।

जप और राग : यदि देवी मंत्र का जाप किसी विशेष राग (जैसे दुर्गा या भैरवी) में हो तो साधक शीघ्र एकाग्र होता है।

 नृत्य और ताल : डांडिया-गरबा के लयबद्ध स्वर मूलाधार और स्वाधिष्ठान चक्र को सक्रिय करते हैं।

 मौन साधना : अंततः जब संगीत का बहिरंग रूप शांत होता है, तब भीतर का अनहद नाद स्वयं प्रकट होता है।

शारदीय नवरात्र की संगीत साधना केवल भक्ति नहीं, बल्कि आत्मानुभूति की विज्ञान है।

राग-रागिनियों के माध्यम से साधक देवी के विभिन्न रूपों का अनुभव करता है—

 भैरवी में करुणा,

 दुर्गा में शक्ति,

 मालकौंस में रहस्य और गहनता।

जब स्वर और भक्ति मिलते हैं, तब साधक अपने भीतर उस अनहद नाद को सुन पाता है, जो सृष्टि के मूल का स्पंदन है। यही नवरात्र का सच्चा संगीत-रस है।