जसवंतनगर/इटावा: समाधान दिवस बने व्यवधान दिवस
शासन ने लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए न जाने कितने दिवस निर्धारित कर दिये है। जैसे गाँब पंचायत दिवस, ब्लॉक दिवस, थाना दिवस, तहसील दिवस, और शासन से शख्त आदेश भी है कि हर अधिकारी अपने हर हाल में 10 बजे से 12 बजे तक अपने अपने कार्यालयों में बैठकर जनता की समस्याओं को सुनेंगे ही नहीं बरन तहसील स्तर के अधिकारी वहीं पर रात को रुकेंगे भी, पर ऐसा क्या हकीकत में होता है. 10 बजे कोई भी अधिकारी अपनी ऑफिस में आता ही नहीं है. आयें भी क्यों? कौन है पूछने बाला, अगर कहीं किसी पत्रकार ने सवाल उठाया तो बता दिया कि हम क्षेत्र में थे, बात खत्म,
अब बात करते है रात में रुकने की, आप लोग ही बताइये कि कौन सा अधिकारी जसवंतनगर में रुक रहा है।अगर इस संबंध में बात करो तो हाजिर जबाब तैयार है. कि सरकारी आवास बने ही कहाँ है. जो हम रुक सकें।सरकार की मंसा अलग है और अधिकारियों की मंसा अलग है. अधिकारी हर सरकारी योजना में पलीता लगा ही देते है.
समाधान दिवसों का काला सच
कल तहसील समाधान दिवस था। उस दिवस में अधिकारी बैठे बैठे फरियादियों का इंतजार करते रहे उघते रहे पर फरियादी नदारत थे,आखिर क्यों? इस क्यों पर कोई अधिकारी बात क्यों नहीं करता या जानने की कोशिश क्यों नहीं की जाती कि आखिर ये ग्राफ गिर क्यों रहा है।
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क्या क्षेत्र समस्या विहीन हो गया है या फरियादियों का इन दिवसों से मोह भंग हो गया है.
फरियादी कम आयें या ज्यादा आयें इन अधिकारियों की बला से, क्योंकि पूछने और जानने बाला है कौन सरकार भाजपा की है विद्यायक और सांसद सपा का है. इसलिए दोनों दलों के नेता अपनी अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे है बच रहे है।
जसवंतनर की जनता का ये दुर्भाग्य ही कहेंगे . कि दो पाटों के बींच में पिसना जनता को ही है।
सांसद ने चुनाव जीतने के बाद इधर मुड़कर भी नहीं देखा है कि जसवंतनगर है किधर, क्योंकि उन्हें पता है कि हम कोई भी बहाना बता कर साफ निकल जायेंगे.
जबसे देश आजाद हुआ है तब से हम लोग सांसद चुनते आ रहे है..
अब जनता जबाब चाहती है कि इस जसवंतनगर बिधानसभा में सासद निधि से कितने कार्य कराये गये है. और कितनी बार जनता दरबार लगाकर लोगों की समस्या को सुना या जाना गया है या इन दिवसों की समीक्षा की हो।
नेता या कार्यकर्ता दोनों से जबाब माँगा जा रहा है
तहसील दिवसों और थाना दिवसों में केवल ऑर्डर किये जाते है.कि गुण बत्ता पूर्ण समाधान होना चाहिए.
गुण को खा लिया है अब केवल बचा बट्टा, सो हो रहा है.
अधिकारी क्या मूर्ख है जो तुम्हारी समस्याओं को इन दिवसों के माध्यम से सॉल्ब कर दे. यार समझते क्यों नहीं हो घोड़ा घास से यारी करके खायेगा क्या.
उदाहरण
एक सज्जन ने जिलाधिकारी की अध्यक्षता में सम्पूर्ण समाधान दिवस में शिकायत की, कि अमुक व्यक्ति ने हमारी समर की केवल चोरी कर ली है। उससे पूछ बता कर हमारी केबिल वापस दिला जी जाये, हम कोई मुक़ददमा बाजी नहीं चाहते है. हाँ अगर बो आना कानी करे तो फिर जाँच कर कानूनी कार्रवाही की जाये।
इसकी जाँच दरोगा ललित कुमार चतुर्बेदि को दी जाती है. दरोगा चूंकि दरोगा होता है उसने थाने की मेज पर ही बैठ कर समस्या का समाधान चोर के खिलाफ शन्ति भंग की कार्रवाही करके लिख दिया कि चोरी की पुष्टि नहीं हुई है।
ज़ब चोरी की पुष्टि नहीं हुई है तो फिर शिकायत कर्ता के खिलाफ मुक़ददमा दर्ज क्यों नहीं कराया।
ज़ब उसके मोबाईल पर समस्या समाधान का मैसेज आया तो उसने गलत की गई समस्या की शिकायत थाने, तहसील सभी जगह की नतीजा ढाक के तीन पात रहा।
हैरान और परेशान होकर उसने अपनी शिकायत आई जी आर एस के माध्यम से शासन को लिख भेजी है। पर क्या होगा परिणाम पहले से पता है एक चोर की जाँच डकैत करेगा.
अभी जनपद मैनपुरी की किशनी तहसील में DM ने शिकायत कत्री माँ और बेटी को ही जेल भेज दिया था.
क्योंकि उसको न्याय नहीं मिल रहा था तो माँ ने जोरदार आबाज में कह दिया था सब मिले हुये है
बस डी एम का पारा चढ़ जाता है,और आदेश देते है इसको अरेस्ट कर जेल भेज दो।
ये है इन दिवसों की हकीकत
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