राष्ट्रीय प्रेस दिवस के शुभ अवसर पर भारतीय मीडिया से सम्बन्धित समस्त कार्यकर्ताओं को स्वयं से ये प्रश्न पूछना चाहिए

 लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला 

राष्ट्रीय प्रेस दिवस के शुभ अवसर पर भारतीय मीडिया से सम्बन्धित समस्त कार्यकर्ताओं को स्वयं से ये प्रश्न पूछना चाहिए:

1. जब सत्ता से सवाल पूछना आपका धर्म है, तो आप सत्ता के प्रवक्ता क्यों बन बैठे?

2. TRP के दबाव में सच को दफनाने का निर्णय आप लेते हैं या मालिकान?

3. क्या आपकी बहसों में चीख़ना सूचना का नया मापदंड है?

4. आपने “Breaking News” को ब्रेकिंग नैतिकता कब से बना लिया?

5. पत्रकारिता और दलाली में कितने इंच का अंतर बचा है?

6. क्या आपको सच का डर लगता है या मालिकों को विज्ञापनदाता का?

7. सत्ता विरोधी खबरें गायब क्यों हो जाती हैं— किसके इशारे पर?

8. अगर आप चौथा खंभा हैं तो खुद ही सबसे कमजोर ईंट क्यों बने हुए हैं?

9. बिहार, यूपी, बंगाल, पंजाब की जमीनी समस्याएँ आपके स्टूडियो तक क्यों नहीं पहुँचतीं?

10. आप जनता की आवाज़ हैं— या जनता को बहकाने का औजार?

11. क्या फ़र्ज़ी डिबेट और प्रोपेगेंडा आपके चैनल की नई पहचान है?

12. प्रेस की स्वतंत्रता गिर रही है— क्या आपको शर्म नहीं आती कि आप ही इसका कारण हैं?

13. क्या पत्रकारिता “राय” बन गई है और “तथ्य” उसके नीचे दबा दी गई चीज़?

14. आपने विरोधी विचारों को स्टूडियो में अपमानित करना ही प्राइमटाइम क्यों बना लिया?

15. किसान–मजदूर–महिला–दलित मुद्दों पर आपकी चुप्पी आदेशित है या स्वेच्छा से?

16. आपने विज्ञापनदाता को भगवान और दर्शक को ‘डेटा’ क्यों समझ लिया?

17. क्या आपको पता है कि दर्शक सच जानना चाहता है, ड्रामा नहीं?

18. जब पत्रकार सत्ता की मेज़ पर बैठ जाए, तो उसका कलम किसके लिए चलता है?

19. क्या आप स्वीकार करेंगे कि न्यूज़ रूम अब न्यूज़ नहीं, नैरेटिव बनाते हैं?

20. और सबसे बड़ा सवाल—

क्या आप लोकतंत्र की रक्षा करेंगे या लोकतंत्र को बेचने का ठेका आपने ले रखा है?