प्रदूषण का षड्यंत्र: पराली गायब, पर दमघोंटू हवा का असली दोषी कौन?
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
प्रदूषण का षड्यंत्र: पराली गायब, पर दमघोंटू हवा का असली दोषी कौन?
कल रात इंडिया गेट पर दिल्ली की जनता ने 'सांस लेने के अधिकार' के लिए प्रदर्शन करके एक लाख रुपए का सवाल सीधे सत्ता और मीडिया के सामने फेंक दिया है: जब पंजाब, हरियाणा में बाढ़ के कारण पराली नहीं जली, तो फिर दिल्ली-एनसीआर की हवा में इतना जानलेवा प्रदूषण कहाँ से आया?
हर साल, न्यूज़ चैनलों और अखबारों की हेडलाइन का सबसे बड़ा खलनायक—किसानों की पराली—इस साल आश्चर्यजनक रूप से गायब है। इस साल हुई बेहिसाब बारिश और बाढ़ के कारण बड़े पैमाने पर पराली जलाना संभव नहीं हुआ, लेकिन दिल्ली का प्रदूषण स्तर वहीं दमघोंटू बना रहा। यह साफ़ करता है कि जिस पराली को प्रदूषण का 48% दोषी ठहराया जाता रहा है, वह असल कहानी का केवल एक पर्दा है।
## असली खलनायक: उद्योग जगत और सत्ता का संरक्षण
मीडिया इस 'लाख रुपए के सवाल' को हजम कर गया, क्योंकि प्रदूषण का असली दोषी—उद्योग जगत, खासकर पावर सेक्टर—है, और यह दोषी सत्ता के उच्चतम गलियारों से संरक्षण प्राप्त है।
ऊर्जा उत्पादन की पोल: ऊर्जा उत्पादन प्रदूषण रैंकिंग में शीर्ष पर बना हुआ है। बिजली और ऊष्मा उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन (कोयला) का दहन वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 75% हिस्सा बनता है।
अडानी एंगल: भारत में अडानी समूह देश में सबसे अधिक कोयला-आधारित बिजली घरों के मालिक हैं और कोयला उत्खनन में भी उनका बड़ा व्यवसाय है।
मीडिया इस एंगल को कभी उजागर नहीं करता कि प्रदूषण में अडानी जैसे बड़े कॉरपोरेट्स का कितना बड़ा हिस्सा है, क्योंकि यह सीधे सत्ता के संरक्षणवाद पर सवाल खड़ा करता है।
## मानक बदले गए ताकि 'मित्र' को कष्ट न हो
यह मामला केवल प्रदूषण फैलाने तक सीमित नहीं है, बल्कि सरकार ने खुलकर पर्यावरण मानकों में हेरफेर करके उद्योगपतियों को खुली छूट दी है:
कानून में बदलाव: 2019 में, मोदी सरकार ने देश के पर्यावरण मंत्रालय के माध्यम से कोयले से चलने वाले थर्मल पावर प्लांट्स से होने वाले वायु प्रदूषण के तय मानकों को घटाने के बजाय बढ़ा दिया।
नाइट्रोजन ऑक्साइड की सीमा में वृद्धि: पर्यावरण मंत्रालय ने थर्मल पावर प्लांट्स से निकलने वाली जहरीली गैस नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) की सीमा 300 mg/Normal Cubic Meter से बढ़ाकर 450 mg/Normal Cubic Meter कर दी।
स्पष्ट उद्देश्य: मई 2019 में एक मॉनिटरिंग रिपोर्ट आई थी, जिसमें पाया गया था कि सात में से सिर्फ दो इकाइयां ही 300 mg/Nm³ के मानक से ज्यादा उत्सर्जन कर रही थीं। ये दोनों इकाइयां अडानी पावर राजस्थान लिमिटेड की थीं, जिनका उत्सर्जन 509 mg/Nm³ और 584 mg/Nm³ था, जो निर्धारित सीमा से बहुत ज़्यादा था।
"यानी, सरकार ने अपने परममित्र उद्योगपति को कष्ट न हो, इसलिए प्रदूषण के ख़तरे को कम करने के बजाय, प्रदूषण फैलाने की कानूनी सीमा को ही बढ़ा दिया!"
इस तरह, जब देश की जनता जहरीली हवा में घुट रही होती है, तो मीडिया किसानों को दोष देने में लग जाता है, ताकि उद्योगों की लूट और सत्ता के संरक्षण का मूल बात छिप जाए। प्रदूषण फैलाने में उद्योगों का हिस्सा है, और इस हिस्सेदारी को सत्ता का सहयोग मिल रहा है—यह वह सच है जिसे छुपाया जा रहा है।
