आरएसएस वाशिंगटन में: राष्ट्रवाद, लॉबिंग और पारदर्शिता का संकट
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
आरएसएस वाशिंगटन में: राष्ट्रवाद, लॉबिंग और पारदर्शिता का संकट
भारत की सबसे प्रभावशाली वैचारिक संस्था — राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) — अब वाशिंगटन के पावर कॉरिडोर में दाखिल हो चुकी है। अमेरिकी सीनेट के लॉबिंग रजिस्ट्रेशन दस्तावेज़ों के अनुसार, Squire Patton Boggs (SPB) नामक लॉ फर्म ने वर्ष 2025 की तीन तिमाहियों में आरएसएस के लिए $3.3 लाख डॉलर (लगभग ₹2.75 करोड़) की लॉबिंग की है। उद्देश्य बताया गया — “US lawmakers को RSS की गतिविधियों पर शिक्षित करना” और “भारत-अमेरिका संबंधों को सुदृढ़ करना”।
पर सवाल यह है कि —
* एक अपंजीकृत, टैक्स-फ्री, और वैचारिक संगठन विदेशी धरती पर क्या ‘लॉबिंग’ कर रहा है?
* क्या “राष्ट्रवाद” अब डॉलर की भाषा में अनुवादित हो गया है?
## अमेरिका में राष्ट्रवाद का नया चेहरा
RSS की लॉबिंग अमेरिकी कानून Lobbying Disclosure Act (LDA) के तहत दर्ज की गई है। यह वही कानून है जो वाशिंगटन में चलने वाली हजारों कॉरपोरेट या राजनीतिक लॉबिंग को नियंत्रित करता है। परंतु यहाँ एक पेचीदगी है — यदि कोई अमेरिकी फर्म किसी विदेशी राजनीतिक संगठन के लिए लॉबिंग करती है, तो उसे Foreign Agents Registration Act (FARA) के तहत पंजीकरण करना होता है। RSS के मामले में ऐसा नहीं किया गया। यानी RSS को “विदेशी राजनीतिक इकाई” नहीं माना गया, बल्कि “सामान्य ग्राहक” के रूप में दर्ज किया गया।
यह तकनीकी अंतर वही खिड़की है जिससे राजनीतिक नैतिकता फिसल जाती है। RSS ने FARA से बचकर न केवल अपने उद्देश्य को धुंधला रखा, बल्कि यह भी टाल दिया कि उसे भारत सरकार से कोई औपचारिक अनुमति मिली है या नहीं।
## नागपुर से वाशिंगटन तक का सफ़र
RSS स्वयं को “व्यक्तियों का संगठन” बताकर भारत में किसी कानून के अंतर्गत पंजीकृत नहीं है। वह कोई NGO नहीं, न ही कोई ट्रस्ट — और न ही सरकार को कर (Tax) देता है। फिर भी उसके नाम पर अमेरिका में आधिकारिक लॉबिंग दर्ज है, और भुगतान की राशि लाखों डॉलर में है।
इस धन का स्रोत कौन है — यह प्रश्न किसी मीडिया रिपोर्ट या सरकारी एजेंसी ने अब तक नहीं पूछा।
भारत में विदेशी फंडिंग के लिए FCRA (Foreign Contribution Regulation Act) का प्रावधान है; कोई भी भारतीय संस्था यदि विदेशी सेवाओं के लिए भुगतान करती है, तो उसे RBI और गृह मंत्रालय से अनुमति लेनी होती है। RSS ने यह अनुमति ली या नहीं — इसका कोई रिकॉर्ड सार्वजनिक नहीं है।
## वाशिंगटन की वही फर्म — जो पाकिस्तान और सऊदी के लिए भी काम करती है
Squire Patton Boggs दुनिया की सबसे प्रभावशाली लॉबिंग फर्मों में गिनी जाती है। पर इसकी क्लाइंट-लिस्ट दिलचस्प है: यह फर्म पाकिस्तान सरकार की ओर से अमेरिकी प्रशासन के साथ खनन और रणनीतिक समझौतों पर लॉबिंग कर चुकी है। यही नहीं, जमाल खशोगी की हत्या के बाद जब सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) अंतरराष्ट्रीय आलोचना से घिरे थे, तो उनकी “रिपुटेशन रिस्टोर” करने के लिए जिन 16 लॉबिंग फर्मों को सऊदी अरब ने हायर किया, उनमें SPB भी शामिल थी।
अब वही फर्म भारत के सबसे प्रभावशाली राष्ट्रवादी संगठन — RSS — की छवि सुधारने में लगी है।
इस विडंबना को आप क्या कहेंगे? राष्ट्रवाद और इस्लामिक निरंकुशता — दोनों एक ही फर्म की लॉबिंग लिस्ट में साथ-साथ दर्ज हैं।
## राष्ट्रीय स्वाभिमान या अंतरराष्ट्रीय ब्रांडिंग?
RSS की वैचारिक आत्मा “स्वदेशी” पर आधारित है — विदेशी पूँजी, विदेशी प्रभाव, विदेशी एजेंडा — इन सबके खिलाफ वह 1925 से आवाज़ उठाती रही है। किन्तु वही संगठन आज अमेरिकी लॉबिंग मशीनरी में निवेश कर रहा है, वही नेटवर्क जो कॉरपोरेट हितों, विदेशी सरकारों, और सैन्य ठेकेदारों को नीति-निर्माण के केंद्र तक पहुँचाता है।
क्या RSS को लगा कि भारत में उसे जितनी वैचारिक वैधता चाहिए थी, वह मिल चुकी है — अब बारी है अंतरराष्ट्रीय वैधता की? या फिर यह अमेरिकी सत्ता के गलियारों में “हिंदुत्व” को मुख्यधारा में शामिल कराने की कूटनीतिक रणनीति है?
## भारतीय कानून की दृष्टि से गम्भीर प्रश्न
1. FCRA और FEMA:
क्या RSS (या उसके प्रतिनिधियों) को विदेश में सेवा खरीदने की अनुमति थी?
यदि नहीं, तो यह विदेशी मुद्रा अधिनियम का उल्लंघन हो सकता है।
2. आयकर और पारदर्शिता:
जब संगठन कर नहीं देता, तब इतनी बड़ी रकम की फंडिंग का स्रोत कैसे सत्यापित होगा?
3. लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व:
RSS कोई निर्वाचित निकाय नहीं है।
फिर भी वह ऐसे कदम उठा रहा है जिनका असर भारत की विदेश नीति की धारणा पर पड़ सकता है।
यह “shadow diplomacy” का उदाहरण बनता है — जहाँ गैर-निर्वाचित संगठन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्र के हितों की व्याख्या अपने ढंग से करता है।
## वैचारिक संकट: राष्ट्रवाद बनाम उत्तरदायित्व
RSS ने दशकों तक “राष्ट्रीय गौरव”, “संस्कृति की रक्षा” और “स्वदेशी चेतना” को अपनी वैचारिकी का केंद्र बनाया, पर जब वही संगठन एक ऐसी फर्म से लॉबिंग कराए जो पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे देशों की सत्ता को मजबूत करने में मदद कर चुकी है, तो यह केवल राजनीतिक नहीं — बल्कि नैतिक संकट भी है।
राष्ट्रवाद, जब पारदर्शिता से रहित होता है, तो वह केवल नैरेटिव का हथियार बन जाता है — जहाँ “सेवा” और “स्वदेशी” के शब्द सिर्फ प्रतीक बनकर रह जाते हैं।
## एक वैश्विक प्रश्न
RSS का अमेरिकी लॉबिंग प्रकरण केवल भारत की आंतरिक राजनीति का विषय नहीं है — यह उस दौर का दर्पण है जहाँ “राष्ट्रवाद” और “कॉर्पोरेट पावर” का संगम वैश्विक राजनीति का नया चेहरा बन चुका है।
भारत, जो लोकतांत्रिक पारदर्शिता और नागरिक उत्तरदायित्व की सबसे बड़ी मिसाल माना जाता है,
वहाँ यदि कोई अपंजीकृत संगठन विदेशी राजधानी में अपनी छवि सुधारने के लिए धन खर्च करता है,
तो यह सवाल उठाना अनिवार्य है — “कौन बोल रहा है भारत की ओर से? सरकार, जनता — या फिर एक ऐसी वैचारिक संस्था जो खुद किसी जवाबदेही के दायरे में नहीं आती?”
#अन्ततः
“राष्ट्रवाद तब तक वास्तविक नहीं हो सकता जब तक वह पारदर्शिता और उत्तरदायित्व में निहित न हो। वाशिंगटन के गलियारों में RSS की लॉबिंग इस सदी के सबसे बड़े राजनीतिक विरोधाभासों में से एक है — जहाँ स्वदेशी विचार विदेशी सलाहकारों के हाथों आउटसोर्स हो गया।”
