बाल दिवस : देश के भविष्य की मासूम धड़कनों के नाम एक पर्व
लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला
बाल दिवस : देश के भविष्य की मासूम धड़कनों के नाम एक पर्व
किसी भी राष्ट्र की सबसे अनमोल पूँजी उसके बच्चे होते हैं। वे केवल वर्तमान का हिस्सा नहीं, बल्कि भविष्य की रचना करने वाले वे हाथ हैं, जिनमें आने वाले युगों की रूपरेखा छिपी रहती है। जिस देश के बच्चे स्वस्थ, शिक्षित और सुरक्षित होते हैं, वही देश विकास की सीढ़ियाँ दृढ़ता और तेज़ी से चढ़ता है। बच्चों की इस महत्ता को समझते हुए विश्व के अनेक देशों ने उनके संरक्षण और अधिकारों के लिए विशेष कानून और व्यवस्थाएँ बनाई हैं, और भारत भी इससे अछूता नहीं है।
भारत में 14 नवंबर—पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती—को ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह तिथि इसलिए चुनी गई, क्योंकि नेहरूजी बच्चों के प्रति अपार स्नेह रखते थे और बच्चे भी उन्हें उसी अपनत्व से ‘चाचा नेहरू’ कहकर पुकारते थे। उनका यह स्नेह केवल भावनाओं तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए नीतिगत निर्णयों और संस्थागत निर्माणों के रूप में एक ठोस आधार भी छोड़ा।
नेहरूजी ने वर्ष 1955 में चिल्ड्रन फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया की स्थापना कर बच्चों के लिए सार्थक और स्वदेशी सिनेमा के द्वार खोले। इससे पहले और बाद में भी वे शिक्षा, विज्ञान, बाल-स्वास्थ्य और प्रतिभा-विकास के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाते रहे। एम्स, आईआईटी, आईआईएम जैसे संस्थानों का निर्माण केवल संस्थाएँ बनाना नहीं था—यह देश की आने वाली पीढ़ियों के लिए नई सोच, नए अवसर और नई उड़ान का आधार तैयार करना था।
## बाल दिवस का इतिहास – दुनिया से भारत तक
बाल दिवस की जड़ें इतिहास में काफी गहरी हैं। वर्ष 1857 में अमेरिका के चेल्सी नगर में रेवरेन्ड चार्ल्स लियोनार्ड ने पहली बार बच्चों को समर्पित एक प्रार्थना-सभा आयोजित की—इसे ही आधुनिक बाल दिवस की आरंभिक नींव माना जाता है।
उसके बाद 1925 में ‘विश्व बाल कल्याण सम्मेलन’ में इसे अंतरराष्ट्रीय रूप मिला। वर्ष 1954 में संयुक्त राष्ट्र ने 20 नवंबर को "विश्व बाल दिवस" के रूप में मान्यता दी—इसी तिथि को दुनिया के कई देश आज भी मनाते हैं।
भारत में 1964 तक बाल दिवस 20 नवंबर को ही मनाया जाता था, किन्तु नेहरूजी के निधन के बाद उनके जन्मदिन—14 नवंबर—को यह सम्मानजनक रूप दिया गया।
आज भी कई देश 1 जून को “चाइल्ड प्रोटेक्शन डे” के रूप में बाल दिवस मनाते हैं, तो कुछ राष्ट्र 20 नवंबर की मूल परंपरा का पालन करते हैं। परंतु तिथि चाहे जो भी हो, उद्देश्य एक ही है— बच्चों का अधिकार, सम्मान, सुरक्षा और सर्वांगीण विकास।
## बाल दिवस की आत्मा — एक स्मरण, एक संकल्प
बाल दिवस केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि यह उस संवेदनशील चेतना का स्मरण है कि हर बच्चा विशेष है, हर बच्चा अनमोल है और हर बच्चा भविष्य का नया अध्याय लिखने वाला एक छोटा-सा दीपक है।
यह दिन हमें रोककर पूछता है—
क्या हमने सच में उन बच्चों को वह दिया जिसकी उन्हें सबसे ज़्यादा आवश्यकता है?
क्या हम उन्हें शिक्षा, पोषण, सुरक्षा और अवसर प्रदान कर पा रहे हैं?
क्या वे बाल मजदूरी, कुपोषण, दुरुपयोग और शोषण जैसी त्रासदियों से मुक्त हैं?
अफसोस, आज भी भारत में अनेक बच्चे बाल श्रम में फँसे हैं, भोजन और पढ़ाई से वंचित हैं, गलत रास्तों में भटक रहे हैं, नशे और अपराध के दलदल में धँसे हैं, और कम उम्र में ही यौन अपराधों व शोषण के शिकार हो रहे हैं। जब तक यह दर्द विद्यमान है, तब तक हर बाल दिवस अधूरा है।
## भारतीय संविधान में बाल-अधिकार — भविष्य की सुरक्षा की शपथ
भारत का संविधान बच्चों के अधिकारों को संरक्षण देने के लिए कई स्पष्ट प्रावधान करता है—
अनुच्छेद 15(3) : राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार।
अनुच्छेद 21A : 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा।
अनुच्छेद 24 : खतरनाक उद्योगों में बाल श्रम का निषेध।
अनुच्छेद 39(e) : बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की संवैधानिक जिम्मेदारी।
अनुच्छेद 39(f) : बच्चों के विकास हेतु आवश्यक सुविधाओं की उपलब्धता।
यही नहीं, संविधान बच्चों को—
• सुरक्षित बचपन,
• शिक्षा,
• पोषण,
• शोषण से सुरक्षा,
• समान अवसर
जैसे मूलाधिकार प्रदान करता है।
## ‘चाचा नेहरू’ — प्रेम और विश्वास का प्रतीक
नेहरू को “चाचा नेहरू” कहे जाने के पीछे कोई आधिकारिक दस्तावेज़ नहीं मिलता, परन्तु लोककथाएँ, स्मृतियाँ और इतिहास के भावनात्मक प्रसंग बताते हैं कि बच्चों के प्रति उनका स्नेह इतना प्रगाढ़ था कि वह नाम अपने आप लोकप्रिय हो गया। एक मान्यता यह भी है कि वे गांधीजी को अपना “बड़ा भाई” मानते थे—गांधी यदि राष्ट्र के “बापू” थे, तो नेहरू स्वाभाविक रूप से बच्चों के “चाचा” बन गए।
## उत्सव जो अवकाश नहीं, अवसर है
बाल दिवस भले ही राष्ट्रीय पर्व है, पर यह राजपत्रित अवकाश नहीं है और संभव है, यह सही भी है— क्योंकि यह दिन बच्चों को घर बैठाने के लिए नहीं, बल्कि स्कूलों में उन्हें मंच देने के लिए है।
देशभर के विद्यालय सांस्कृतिक कार्यक्रमों, चित्रकला प्रतियोगिताओं, खेल, संगीत, नृत्य और नाट्य मंचन के द्वारा बच्चों की प्रतिभा को निखारते हैं। सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएँ उनके अधिकारों को लेकर जागरूकता फैलाती हैं। टीवी चैनल और मीडिया पर बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।
यह दिन सीखने और आनंद का उत्सव है— केवल उत्सव का अवकाश नहीं।
## एक सार्थक निष्कर्ष : तभी होगा बाल दिवस सफल
जब तक देश का हर बच्चा—
• स्कूल तक पहुँचे,
• पोषण पाए,
• सुरक्षित रहे,
• शोषण से मुक्त रहे,
• अवसर पाए—
तभी बाल दिवस की सार्थकता पूर्ण होगी।
वरना यह दिन केवल रस्म बनकर रह जाएगा, कुछ बच्चों की खुशी बनकर रह जाएगा, जबकि राष्ट्र का भविष्य—उन अनगिनत वंचित बच्चों में—अंधकार में छिपा रह जाएगा।
सरकार, समाज, परिवार—तीनों की संयुक्त जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को अधिकार, अवसर और सम्मान दें।
क्योंकि— “आज के बच्चे ही कल का भारत लिखेंगे— और जिस तरीके से हम उन्हें गढ़ेंगे, उसी तरह का भारत आकार लेगा।”
