बिहार–2025 के जनादेश का प्रतिध्वनि प्रभाव: उत्तर प्रदेश की राजनीतिक दिशा कहाँ मुड़ेगी?

 लखनऊ डेस्क प्रदीप शुक्ला


बिहार–2025 के जनादेश का प्रतिध्वनि प्रभाव: उत्तर प्रदेश की राजनीतिक दिशा कहाँ मुड़ेगी?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 केवल एक प्रांतीय जनादेश नहीं था; उसने उत्तर भारत की राजनीति को प्रभावित करने वाली गहरी सामाजिक धाराओं का संकेत दिया है। विशेषकर उत्तर प्रदेश—जहाँ 2027 का चुनाव अब दूर नहीं—के लिए बिहार का परिणाम सेमीफाइनल से कम नहीं माना जा रहा।

कारण स्पष्ट हैं: दोनों राज्यों की जातीय संरचना, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, स्थानीय सत्ता संरचनाएँ, प्रवासन और श्रम बाजार की राजनीति, और राजनीतिक-भावनात्मक प्राथमिकताएँ लगभग समान हैं। इसलिए बिहार में उठी राजनीतिक लहरें अक्सर कुछ महीनों बाद यूपी के मैदान में भी महसूस होती हैं।

## एनडीए की जीत: उत्तर प्रदेश के लिए मनोबल–वर्धक संकेत

बिहार में एनडीए की व्यापक जीत का सीधा मनोवैज्ञानिक असर उत्तर प्रदेश में पड़ेगा। यह जीत कई कारणों से महत्वपूर्ण है:

डबल इंजन शासन मॉडल (केंद्र + राज्य) का जन-स्वीकृति

कल्याणकारी योजनाओं का योगदान

भाजपा द्वारा बनाए गए स्थायी सामाजिक गठबंधन की निरंतरता

विपक्ष की रणनीतिक असंगति

बिहार के परिणामों ने भाजपा को यूँ संदेश दिया है कि

कल्याणकारी राज्य + मजबूत नेतृत्व = अभी भी एक निर्णायक चुनावी फॉर्मूला है।

और यह संदेश सीधे-सीधे उत्तर प्रदेश के भाजपा कैडर में उत्साह भरता है, क्योंकि यूपी में भाजपा पहले ही संगठनात्मक रूप से सबसे मजबूत है।

## पीडीए मॉडल पर प्रश्न: क्या जातीय गोलबंदी अब पर्याप्त नहीं?

लोकसभा चुनाव 2024 के बाद समाजवादी पार्टी द्वारा विकसित पीडीए (पिछड़ा–दलित–अल्पसंख्यक) मॉडल को विपक्ष की नई सामाजिक इंजीनियरिंग माना जा रहा था। लेकिन बिहार में महागठबंधन—जिसमें आरजेडी और कांग्रेस शामिल थे—उसी फार्मूले पर उतरा, और परिणाम करीब-करीब पूरी तरह उलट रहे।

इसके दो निर्णायक संकेत हैं:

1. जातीय जनगणना को चुनावी हथियार बनाना अब पर्याप्त नहीं।

2. विपक्ष को भाजपा की राष्ट्रवादी–शहरी–कल्याणकारी राजनीति के सामने वैकल्पिक कथा गढ़नी होगी।

अखिलेश यादव ने बिहार के परिणामों को “छल” का परिणाम बताया है और दावा किया है कि वही खेल यूपी में नहीं दोहराया जाएगा। लेकिन उनकी प्रतिक्रिया यह स्वीकार करती है कि:

 बिहार के परिणाम ने समाजवादी पार्टी को चेताया है

और 2027 की रणनीति में नींव-स्तर पर पुनर्विचार होना तय है

## बिहार में महागठबंधन की हार: रणनीति, नेतृत्व और समन्वय की विफलता

बिहार की हार केवल सामाजिक समीकरणों की नहीं थी; यह संगठनात्मक अव्यवस्था और नेतृत्व की अनिर्णयशीलता का परिणाम भी रही।

प्रमुख कारण:

 पारिवारिक विवाद और गुटबाज़ी

 उम्मीदवार चयन में असंतुलन

 विपक्षी दलों में जमीनी तालमेल का अभाव

आर्थिक मुद्दों को समझाने में विफलता

 भाजपा के कल्याणकारी मॉडल की काट न तैयार कर पाना

इन तत्वों से यूपी का विपक्ष भी सीख ले सकता है, क्योंकि

सपा–कांग्रेस में तालमेल की कमी बिहार जैसी परिस्थितियाँ पैदा कर सकती है।

## पूर्वांचल: वह भूगोल जहाँ बिहार की राजनीति सीधे असर डालती है

उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल—गोरखपुर, वाराणसी, मऊ, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, सोनभद्र और आज़मगढ़— भौगोलिक और सामाजिक दोनों दृष्टि से बिहार से जुड़ा है।

बिहार के परिणाम यहाँ तीन प्रकार से असर डालेंगे:

1. जातीय चुनावी गणित में बदलाव

2. स्थानीय नेताओं और छोटे दलों का मूड

3. राजनीतिक कथा की दिशा—राष्ट्रवाद बनाम क्षेत्रीय सामाजिक न्याय

ओमप्रकाश राजभर जैसे छोटे दलों ने बिहार में महागठबंधन की जीत का दावा किया था, लेकिन नतीजों ने उन्हें और अन्य छोटे सहयोगियों को यह संदेश दिया है कि भाजपा-एनडीए के साथ बने रहना उनके लिए सुरक्षित और व्यावहारिक विकल्प है।

## यूपी 2027: क्या बदल सकता है, क्या नहीं?

इन सभी संकेतों को जोड़कर यूपी का राजनीतिक भविष्य तीन दिशाओं में जा सकता है:

1. भाजपा का बढ़ता आत्मविश्वास

कल्याण योजनाएँ + संगठन + नेतृत्व = स्थिर लाभ।

2. सपा का वैचारिक पुनर्संयोजन

पीडीए को नये सामाजिक-आर्थिक आयामों से जोड़ना होगा— नहीं तो यह केवल नारा बनकर रह जाएगा।

3. विपक्षी गठबंधन की मजबूरी

सपा–कांग्रेस गठबंधन अनिवार्य है, पर इसे बिहार की गलतियों से सीखकर समन्वय और स्पष्ट एजेंडा तैयार करना होगा।

## बिहार एक संकेतक है—पर अंतिम सत्य नहीं

बिहार के परिणाम उत्तर प्रदेश के लिए मजबूत संकेत ज़रूर देते हैं, लेकिन हर चुनाव अपनी जमीन, मुद्दों और स्थानीय गणित से तय होता है। फिर भी इतना साफ है:

 भाजपा को बिहार से गति मिली है

 सपा को अपने मॉडल की नए सिरे से समीक्षा करनी होगी

 छोटे दलों के लिए रास्ता स्पष्ट हुआ है

 और यूपी की राजनीति में 2027 तक राष्ट्रवाद बनाम सामाजिक न्याय की दो समानांतर narratives चलती रहेंगी

बिहार ने पहला संदेश दे दिया है— अब 2027 में यूपी उस संदेश का जवाब देगा।